हल्द्वानी: टिहरी उपचुनाव, जिसने हिला दी थी सीएम बहुगुणा की कुर्सी

हल्द्वानी: टिहरी उपचुनाव, जिसने हिला दी थी सीएम बहुगुणा की कुर्सी

हल्द्वानी, अमृत विचार। विजय बहुगुणा राज्य के सीएम बनने से पहले सांसद थे और बाद में विधायक बनने के बाद सांसद की सीट छोड़ दी। अपनी सीट पर अपने बेटे को चुनाव लड़वा दिया लेकिन उनके मुख्यमंत्री रहते उनका बेटा चुनाव नहीं जीत सका। टिहरी लोकसभा सीट के नतीजे के बाद से ही बहुगुणा की सीएम पद की कुर्सी तक हिलने लगी थी, जो बाद में हरीश रावत को मिल गई। 

विजय बहुगुणा साल 2009 में टिहरी से सांसद बने थे। राज्य की पांचों सीट पर साल 2009 में कांग्रेस का कब्जा हुआ। साल 2012 में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर अपनी सरकार भी बना ली। कांग्रेस ने हरीश रावत को दरकिनार कर विजय बहुगुणा को सीएम बना दिया।

इसके बाद सितारगंज विधानसभा का उपचुनाव हुआ और विजय बहुगुणा यहां से विधायक बन गए। उन्होंने टिहरी सीट छोड़ दी और अपने बेटे साकेत बहुगुणा को कांग्रेस से टिकट दिलवा दिया। केंद्र में कांग्रेस और राज्य में भी कांग्रेस की ही सरकार थी। ऐसा लग रहा था कि साल 2012 में कांग्रेस आराम से टिहरी का उपचुनाव जीत जाएगी।

साकेत के खिलाफ माला राज्य लक्ष्मी शाह भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरीं। कांग्रेस अपने लिहाज से चुनाव आसान बनाने के लिए सपा और बसपा को उम्मीदवार खड़ा नहीं करने के लिए भी मना लिया। माना जा रहा था कि तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा अपने बेटे को आराम से चुनाव में विजयी बनवा देंगे।

साथ ही उस समय केंद्र में भी कांग्रेस की सरकार थी। चुनाव प्रचार में भी कांग्रेस पूरे जोर शोर में थी। नतीजे वाले दिन यह आलम था कि कांग्रेसी सुबह से ही ढोल नगाड़े के साथ मतगणना स्थल पर पहुंच गए थे। नतीजे आना शुरू हुए तो कांग्रेस और भाजपा में कई राउंड तक टक्कर रही लेकिन अंत में माला राज्य लक्ष्मी शाह 22,694 वोटों से जीत गईं। कांग्रेस पार्टी सकते में आ गई। विजय बहुगुणा के सीएम रहते ऐसा हो गया।

उन्हें दिल्ली बुलाया गया। उनका विरोधी गुट जिसका नेतृत्व हरीश रावत कर रहे थे वह भी विजय बहुगुणा पर हावी होने की कोशिश करने लगा। उस समय तो विजय बहुगुणा ने किसी तरह अपनी कुर्सी बचा ली लेकिन बाद में केदारनाथ आपदा के बाद उनका जाना तय हो गया और बाद में टिहरी चुनाव के नतीजो के करीब एक साल बाद विजय बहुगुणा की सीएम की कुर्सी चली गई। बाद में विजय बहुगुणा हरीश रावत से नाराज होकर कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में भी चले गए। फिलहाल उनके उनके बेटे सौरभ बहुगुणा राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं।