हल्द्वानी: जब डाकपत्रों से जीती थी टीपीएस ने गढ़वाल की सीट...

हल्द्वानी: जब डाकपत्रों से जीती थी टीपीएस ने गढ़वाल की सीट...

नरेंद्र सिंह, अमृत विचार, हल्द्वानी। उत्तराखंड में सर्विस वोटरों का भी काफी महत्व है। यहां से बड़ी संख्या में लोग फौज के साथ ही अन्य सरकारी महकमों में नौकरी करते हैं लेकिन कभी यह नहीं सोचा जाता है कि सर्विस वोटर भी किसी चुनाव में जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभा देंगे। साल 2008 में पौड़ी गढ़वाल सीट के उपचुनाव में कुछ ऐसा हुआ था। भाजपा प्रत्याशी टीपीएस रावत को डाकपत्रों की गिनती के बाद ही जीत मिली थी।  

साल 2004 के लोकसभा चुनाव में मेजर जनरल (सेनि) भुवन चंद्र खंडूड़ी पौड़ी लोकसभा सीट से सांसद बने। भाजपा की केंद्र में सरकार चली गई तो खंडूड़ी भी केंद्रीय कैबिनेट मंत्री की जगह केवल सांसद रह गए। हालांकि वह लालकृष्ण आडवाणी के चेहते थे। साल 2007 में जब उत्तराखंड में भाजपा सरकार बनी तो सारे समीकरणों को धता बताकर खंडूड़ी को सीएम बना दिया गया। अब खंडूड़ी को विधायक बनना था।

इसलिए उन्होंने कांग्रेस में सेंधमारी की और धूमाकोट से कांग्रेस के विधायक ले. जनरल (सेनि) टीपीएस रावत से सीट खाली करवा ली। कहा यह भी जाता है कि खंडूड़ी की काट के लिए ही कांग्रेस टीपीएस रावत को आगे बढ़ा रही थी, इसलिए खंडूड़ी ने एक तीर से कई निशाने साध दिए। धूमाकोट सीट छोड़ने के बदले में टीपीएस रावत को भाजपा ने पौड़ी सीट से लोकसभा के उपचुनाव में उम्मीदवार बना दिया। साल 2008 में चुनाव हुआ। कांग्रेस के टिकट से सतपाल महाराज ने इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दी।

ईवीएम की गिनती तक टीपीएस रावत मतगणना में 251 वोटों से पीछे चल रहे थे। बाद में शुरू हुई 16 हजार डाकपत्रों की गिनती और उसके बाद टीपीएस रावत महाराज से करीब 8,000 वोटों से जीत गए। यह चुनाव अपने आप में इतिहास बन गया। डाकपत्रों ने भी लोकतंत्र के पर्व में अपना महत्व बता दिया। इसलिए कहा जाता है कि लोकतंत्र में हर वोट निर्णायक होता है। 

साल 2009 में सतपाल ने कर लिया पूरा हिसाब
हल्द्वानी। पौड़ी गढ़वाल सीट पर लोकसभा का चुनाव साल 2009 में हुआ और इस बार इस सीट पर कांग्रेस से सतपाल महाराज तो वहीं भाजपा से टीपीएस रावत मैदान में थे। इस बार महाराज ने पुराना हिसाब चुकता कर लिया और टीपीएस को 17397 वोटों से हरा दिया। बाद में टीपीएस रावत ने भाजपा को अलविदा कह दिया और अपनी पार्टी उत्तराखंड रक्षा मोर्चा बनाई। कुछ दिनों के लिए वह आप में भी शामिल हुए थे। साल 2014 में खंडूड़ी फिर से इस सीट से चुनाव लड़े और सांसद चुने गए।