प्रयागराज: औरंगजेब ने इस शिवलिंग पर मारी थी तलवार, चोट लगते ही निकली थी खून और दूध की धार, जानिए क्या है इस शिव मंदिर का पौराणिक महत्व?
मिथलेश त्रिपाठी, प्रयागराज। क्या आप जानते हैं संगम नगरी प्रयागराज में एक ऐसा शिवामंदिर है जहां विराजमान शिवलिंग पर मुगल सम्राट औरंगजेब ने उसे शिवलिंग की शक्ति देखना के लिए अपनी तलवार मारी थी। आईए हम बताते हैं उस दशाश्वमेध घाट और मंदिर के शिवलिंग का पूरा इतिहास। आपने बहुत सारी ज्योतिर्लिंगों और शिव मंदिरो के बारे मे सुना और देखा होगा। लेकिन संगमनगरी के गंगा नदी के किनारे बने इस दशाश्वमेध मंदिर में स्थापित इस शिवलिंग की हकीकत जान कर आपको आश्चर्य होगा।
दारागंज के दशाश्वमेध घाट का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है। इस घाट पर स्वयं ब्रम्हा जी यज्ञ किया था। इसके अलावा धर्मराज युधिष्ठर ने इसी घाट पर दस यज्ञ किये थे। इसीलिए इस घाट को दशाश्वमेध घाट के नाम से जाना जाता है।
सम्पूर्ण भारत हुई संगम का धार्मिक, पौराणिक, साहित्यक और राजनैतिक में विशेष महत्व माना गया है। जिसे तीर्थराज भी कहा जाता है। इसका वर्णन वेदों में भी किया गया है। मां गंगा तट पर देश विदेश से लाखों लोग आते हैं और मोक्ष की कामना करते है।
संगम घाट से करीब दो किलो मीटर की दूरी पर बने दशाश्वमेध घाट की मान्यता है कि चार वेदों को पाने के बाद स्वयं ब्रह्माजी ने प्रयागराज के इसी स्थान पर यज्ञ किया था। सृष्टि से पहले यहां यज्ञ करने के बाद से इसे तीर्थराज प्रयाग कहा जाने लगा। इस दारागंज के दशाश्वमेध घाट का ऐतिहासिक महत्व है। इसी घाट के सामने दशाश्वमेध भगवान शिव का मंदिर है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को ब्रम्हा जी स्वयं सृष्टि से पहले स्थापित किया था। इसी शिवलिंग पर औरंगजेब ने तलवार चलाई थी। जिसके बाद शिवलिंग ऊपरी हिस्सा आज एक कटा हुआ है। यह शिवलिंग कैसे कटी इसका भी एक पुराना इतिहास है।
बताया जाता है कि सन 1664 में औरंगजेब ने ईश्वरीय शक्ति को आजमाने के लिए मूर्तियों को खंडित करना शुरु कर दिया था। प्रयागराज के दशाश्वमेध घाट पर बने इस शिवलिंग पर भी औरंगजेब ने अपनी तलवार चालाई थी जिसके बाद उस शिवलिंग से दूध और खून की धारा बहने लगी थी। जिसे देख औरंगजेब वहा से भाग निकला था।
मंदिर के पुजारी हरि शंकर ने बताया कि सन 1664 की बात है। ईश्वर की शक्ति को देखने के लिए इस शिवलिंग पर अपनी तलवार चलाई थी। उस दौरान यह शिवलिंग कट गयी थी। उस वक्त शिवलिंग से दूध और खून की धारा निकली थी। जो आज भी देखने को मिलती है। आज भी शिवलिंग के सिर पर तलवार से कटी धार साक्षात इस इतिहास का प्रमाण है।
- अकबर ने रखा था अल्लाहाबाद नाम
मुगल सम्राट अकबर प्रयागराज की धार्मिक और सांस्कृतिक ऐतिहासिकता से काफी प्रभावित था। अकबर ने सन 1582 में 1582 ईस्वी में मुगल सम्राट अकबर द्वारा दीन-ए-इलाही एक समरूप धर्म था, जिसमें सभी धर्मों के मूल तत्वों को डाला, इसमे प्रमुखता हिंदू एवं इस्लाम धर्म थे। इनके अलावा पारसी, जैन एवं ईसाई धर्म के मूल विचारों को भी सम्मलित किया गया। इस नगरी को अल्लाह का वास कहा था। इसीलिए उसने यहां का नाम अल्लाहाबाद रखा था।
सावन व महाशिवरात्रि पर लगता है मेला
दशाश्वेधम घाट पर स्थित शिव मंदिर में ब्रह्माजी ने यज्ञ किया था। इस घाट पर सावन में पूरे एक माह कांवरियों की गंगा जल लेने की भारी भीड़ देखने को मिलती है। कांवरिये गंगाजल भरकर पहले दशाश्वमेध के शिव मंदिर में गंगाजल चढ़ाते हैं। इसके बाद यहां का जल लेकर काशी जाते हैं। महाशिवरात्रि और सावन पर्व पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।
दशाश्वमेध घाट का शुरु हुआ कायाकल्प
दशाश्वमेध घाट का कायाकल्प पहले भी प्रस्तावित हुआ था। इसका पुनर्निर्माण करने के साथ-साथ इसकी छत को जलरोधी बनाने की तैयारी शुरु की जा रही है। जिससे बारिश के पानी का रिश्ताव अंदर न हो। म्न्दिर् मे नई सीढ़ियों, दो प्रवेश द्वार, संगमरमर का फर्श, रेलिंग और छत की डिजाइन की तैयारी भी की जा रही है। कोरीडोर में शामिल किये जाने के बाद अब कार्य तेजी से किया जा रहा है। अधिकारियों के मुताबिक इस शिवामंदिर की दीवारों पर पौराणिक महत्व को भी दर्शाया जाएगा। मंदिरों की दीवारों व अंदर की छतों पर नकाशी भी कराई जाएगी।
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