Allahabad High Court: सीआरपीसी की धारा 156 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के लिए हलफनामा अनिवार्य

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पारिवारिक विवाद के एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि आजकल नियमित तौर पर बिना किसी जिम्मेदारी के केवल कुछ व्यक्तियों को परेशान करने के उद्देश्य से और पुराना हिसाब- किताब बराबर करने के लिए कृत संकल्पित लोग कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह (प्रथम) की एकलपीठ ने भरत सिंह कुशवाहा की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए की।
मौजूदा याचिका में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जालौन, उरई द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। जिसके सापेक्ष कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत दाखिल आवेदन को एक हलफनामे द्वारा समर्थित होना आवश्यक है।
मामले के अनुसार याची ने सीआरपीसी की उक्त धारा के तहत अर्जी दाखिल कर बताया कि उनके बेटे की पत्नी ने उनकी आय का आधा हिस्सा अपने वैवाहिक घर भेजने के लिए उनके बेटे से झगड़ा किया, जिसके कारण अवसादग्रस्त होकर उनके बेटे ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
बता दें कि प्राथमिकी के लिए आवेदन देने के बावजूद प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई जबकि याची ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अपने बेटे की मौत के बारे में एक अखबार की कटिंग सहित दस्तावेज पुलिस अधिकारी को दिए थे, तब भी संबंधित मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की उक्त धारा के तहत दाखिल आवेदन खारिज कर दिया।
हालांकि पुनरीक्षणवादी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि याची के आवेदन पर विचार किए बिना पुलिस स्टेशन द्वारा भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर मजिस्ट्रेट ने आक्षेपित आदेश पारित कर दिया। इस पर कोर्ट ने उक्त धारा के तहत आवेदन के साथ शपथ पत्र की प्रासंगिकता बताते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा निर्देशों का उल्लेख किया, जिसमें यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि उक्त धारा के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के लिए संज्ञेय अपराध का खुलासा करने वाली कोई भी जानकारी देनी अनिवार्य है।
संबंधित अधिकारी संज्ञेय अपराध का खुलासा करने वाली सूचना के आधार पर मामला दर्ज करने के लिए बाध्य होता है। अंत में पीठ ने निष्कर्ष निकला कि अपने पति की मृत्यु के बाद श्रीमती विजयलक्ष्मी ने बैंक प्रबंधक से नामित याची को जमा राशि जारी न करने का अनुरोध किया, साथ ही बैंक में जमा राशि के लिए उत्तराधिकार प्रमाण पत्र की मांग करते हुए पत्नी ने एक दीवानी मामला दाखिल किया।
जिसके जवाब में याची ने पुलिस अधीक्षक को सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत आवेदन दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि याची ने अपने बेटे के उत्पीड़न के समर्थन के लिए कोई साक्ष्य नहीं दिया और न ही उन्होंने अपने आवेदन के समर्थन में हलफनामा दाखिल किया। अतः पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई।
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