बरेली: हर घर तिरंगा, आप देशभक्ति में डूबे... उन्होंने कर दिए लाखों इधर-उधर, अफसरों ने 45 लाख के तिरंगे बनवाए, बांटे नहीं

हरूनगला शेल्टर होम में अब तक पड़े हैं डंप, तत्कालीन जिलाधिकारी ने दिया था सवा दो लाख तिरंगों के वितरण का लक्ष्य, निकायों के जरिए आम लोगों तक पहुंचने थे तिरंगे, भाड़े का पैसा भी किया हजम

बरेली: हर घर तिरंगा, आप देशभक्ति में डूबे... उन्होंने कर दिए लाखों इधर-उधर, अफसरों ने 45 लाख के तिरंगे बनवाए, बांटे नहीं

बरेली, अमृत विचार : हर घर तिरंगा अभियान के दौरान जब आप देशभक्ति की भावनाओं की गिरफ्त में थे, तभी कुछ लोगों ने उसे अपने लिए अवसर बना लिया। डूडा के स्टाफ ने तिरंगों की खरीद में लाखों इधर से उधर कर दिए। इसके बावजूद ये तिरंगे जिन लोगों तक पहुंचने थे, वहां नहीं पहुंचे।

करीब 45 लाख रुपये का भारीभरकम खर्च करने के बाद भी आधे से ज्यादा तिरंगे बोरियों में बेहद उपेक्षा के साथ हरुनगला के शेल्टर होम में डंप पड़े हैं। अब इन तिरंगों की बेकद्री के फोटो वायरल हो रहे हैं तो अफसर भी जांच कराने की बात कह रहे हैं। केंद्र सरकार की ओर से पिछले स्वतंत्रता दिवस पर हर घर तिरंगा अभियान की घोषणा के बाद न सिर्फ इसका जमकर प्रचार हुआ था बल्कि सरकारी सिस्टम ने लोगों को अपने घरों पर तिरंगा लगाने के लिए प्रेरित करने में पूरा दम लगा दिया था।

तत्कालीन जिलाधिकारी ने तिरंगे बांटने के लिए सभी विभागों का लक्ष्य तय किया था। इसी के तहत जिला नगरीय विकास अभिकरण यानी डूडा के अफसरों को भी सवा दो लाख तिरंगे बनवाकर जिले के सभी 20 नगर निकायों को भिजवाने का लक्ष्य दिया गया था। निकायों को ये तिरंगे आम लोगों को वितरित करने थे। एक तिरंगे की 20 रुपये तय की गई थी।

हर घर तिरंगा कार्यक्रम 13 से 15 अगस्त तक चलकर पूरा हो गया लेकिन स्वयं सहायता समूहों से बनवाए गए तिरंगे बोरियों में भरकर हरुनगला के शेल्टर होम में ही पड़े रहे। ये तिरंगे अब तक वहीं पड़े धूल फांक रहे हैं। बताया जाता है कि अफसर तिरंगों को बांटने की जिम्मेदारी कर्मचारियों पर छोड़कर निश्चिंत हो गए और कर्मचारियों ने इन्हें मुसीबत समझकर बोरियों में भरकर शेल्टर होम के कमरे में रखवा दिया।

हेराफेरी : भुगतान के लिए शासन को अफसरों ने भेजी फर्जी रिपोर्ट: अफसर अब तिरंगों का वितरण न करने की ठीकरा कर्मचारियों पर फोड़ रहे हैं लेकिन असलियत यह है कि शासन से भुगतान लेने के लिए फर्जी रिपोर्ट उन्होंने ही भेजी। दरअसल, शासन की ओर से 10 रुपये प्रति तिरंगा के हिसाब से बजट एडवांस भेजा गया था, बकाया दस रुपये तिरंगा के हिसाब से बजट उनके वितरण के बाद दिया जाना था।

अभियान निपटते ही अफसरों ने शासन को फर्जी रिपोर्ट भेज दी कि तिरंगों का शत-प्रतिशत वितरण कर दिया गया था। इसके बाद शासन ने बकाया भुगतान भी कर दिया। इस तरह करीब 45 लाख के खर्च के बावजूद तिरंगे शेल्टर होम में ही पड़े रहे। अभी यह भी साफ नहीं है कि आधे तिरंगे भी निकायों को भेजे गए या नहीं।

आशंका जताई जा रही है कि लक्ष्य के अनुरूप तिरंगे ही नहीं बनवाए गए। जो बनवाए गए, वे सबके सब शेल्टर होम में ही पड़े हैं। तिरंगों को निकायों में भेजने का भाड़े का पैसा भी हजम हो गया।

मुझे हाल ही में पीओ डूडा का अतिरिक्त चार्ज मिला है। जब डूडा को तिरंगे बांटने की जिम्मेदारी दी गई थी, उस वक्त मेरे पास चार्ज नहीं था। अगर तिरंगे बांटने के बजाय डंप कर दिए गए हैं तो इसकी जांच कराई जाएंगी। - अजीत कुमार, अपर नगर आयुक्त

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