ज्ञान-विज्ञान का एकीकरण
दुनिया में करीब 80 प्रतिशत आबादी पारंपरिक औषधि और चिकित्सा पद्धति का इस्तेमाल करती है। संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी के मुताबिक आधुनिक विज्ञान जगत में पारंपरिक औषधि की अहमियत बढ़ रही है। भारत में प्राचीन काल से ही अनेक चिकित्सा पद्धतियां विकसित हुई हैं। सरकार की ओर से देश की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को विकसित करने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं।
आयुष मंत्रालय की स्थापना का भी यही उद्देश्य रखा गया है। वास्तव में पारंपरिक और पैतृक ज्ञान, दुनिया भर के समुदायों में स्वास्थ्य संवर्धन और देखभाल के लिए सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य शक्तिशाली संसाधन है। दूरदराज और दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोगों के लिए, यह सुलभ और किफायती स्वास्थ्य देखभाल का एकमात्र स्रोत है। विशेषज्ञों के मुताबिक आज इस्तेमाल होने वाली 40 प्रतिशत दवाओं व उपचार उत्पाद प्राकृतिक स्रोतों से आए हैं। ऐसे में पारंपरिक प्रथाओं से मिलते-जुलते सुरागों से एथनोफार्माकोलॉजी और रिवर्स फार्माकोलॉजी, अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसे अनुसंधान तरीकों का उपयोग करके नैदानिक दवाओं की पहचान व विकास में मदद मिल सकती है।
गौरतलब है कि विश्व का पहला वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा केन्द्र (जीसीटीएम) नवंबर 2020 से भारत में काम कर रहा है। केन्द्र का कार्य विभिन्न देशों की पारंपरिक दवाओं व पद्धतियों भी एकीकृत करने और उनकी गुणवत्ता व सुरक्षा विनियमित करने में मदद करने के सबूत प्रदान करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1976 में पारंपरिक कार्यक्रम शुरू किया था।
वर्तमान में यह तीसरी पारंपरिक चिकित्सा वैश्विक रणनीति विकसित कर रहा है। जो विभिन्न स्वास्थ्य प्रणालियों में उनके उचित एकीकरण का समर्थन करने के लिए विश्वसनीय जानकारी और डेटा के आधार पर मानदंडों, मानकों और तकनीकी दस्तावेजों को केन्द्रीत करेगी। इसी सप्ताह गुजरात के गांधीनगर में पारंपरिक औषधि वैश्विक शिखर सम्मलेन में लोगों और ग्रह के सार्वभौमिक स्वास्थ्य व कल्याण हेतु, पांरपरिक औषधि की विशाल क्षमता और अनुप्रयोगों पर नए सिरे से नजर डाली गई।
सम्मेलन में सभी देशों से अपनी राष्ट्रीय प्रणालियों में पारंपरिक एवं पूरक औषधि को एकीकृत करने के उपायों पर जोर दिया गया। कहा जा सकता है कि पारंपरिक चिकित्सा, आधुनिक चिकित्सा विरोधी नहीं, बल्कि उसकी पूरक है। पारंपरिक चिकित्सा को आधुनिकता के साथ जोड़ने से जैव विविधता का संरक्षण भी होगा। साथ ही विज्ञान के माध्यम से पारपरिक चिकित्सा की शाक्ति को उजागर करके हम प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान अपनाकर सामूहिक रूप से एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य, के जरिए स्वास्थ्य संबंधी टिकाऊ विकास लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
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