बरेली: बेअसर आदेश बता रहा लैंगिक अपराध रोकने को कितने फिक्रमंद हैं विभाग

दफ्तरों में महिला उत्पीड़न से जुड़े मामलों में कार्रवाई के लिए गठित होनी हैं समितियां

बरेली: बेअसर आदेश बता रहा लैंगिक अपराध रोकने को कितने फिक्रमंद हैं विभाग

अनुपम सिंह/बरेली, अमृत विचार। कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ होने वाले लैंगिक अपराध के मामलों को रोकने और उनमें कार्रवाई के लिए दफ्तरों में आंतरिक परिवाद समिति के गठन का दस साल पहले बना कानून अब तक हवा में तैर रहा है। इकलौता कलेक्ट्रेट ही ऐसा है जहां स्थायी समिति का गठन हुआ है बाकी विभागों ने इसका अब तक पालन नहीं किया गया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की सुनवाई और उनमें कार्रवाई को लेकर अफसर कितने फिक्रमंद हैं।

2013 में पारित हुए अधिनियम-4 लैंगिक अपराध (निवारण प्रतिशोध और प्रतितोष) को रोकने के लिए सभी दफ्तरों (संगठन, संस्थान जहां 10 से अधिक कर्मचारी कार्य करते हैं) में आंतरिक शिकायत (परिवाद) समिति गठित करने का आदेश जारी हुआ था। इसको लेकर सरकारों की ओर से भी समय-समय पर निर्देश दिए गए लेकिन समिति का गठन नहीं किया गया।

ऐसा तब है जब अक्सर किसी न किसी विभाग में महिलाओं के लैंगिक उत्पीड़न की शिकायतें सामने आती रहती हैं। जिले में सिर्फ कलेक्ट्रेट में डीएम की ओर से स्थायी समिति का गठन किया गया है बाकी किसी भी सरकारी, अर्धसरकारी, निजी, संगठित, असंगठित क्षेत्र के कार्यालयों में समितियों का गठन नहीं हुआ है।

विभागों में समिति का गठन क्यों नहीं किया गया, इस पर कोई भी कुछ स्पष्ट कहने वाला नहीं है। सूत्र बताते हैं कि आदेश की अवहेलना करने के पीछे मनमानी और मामले काे गंभीरता से लेना बड़ी वजह है।

समिति की जिम्मेदारी
सरकारी, निजी दफ्तरों में कार्यरत महिलाओं के साथ अगर कोई लैंगिक उत्पीड़न की घटना होती है तो तत्काल समिति मामले को उच्चाधिकारियों के संज्ञान में लाकर आरोपी के खिलाफ कार्रवाई कराएगी, इससे महिलाएं कार्यस्थल पर बिना किसी संकोच, निडर होकर काम कर सकेंगी। यह नियम उन सभी कार्यालयों, संस्थानों पर लागू है, जहां 10 या उससे अधिक कर्मचारी तैनात हैं, फिर चाहे वहां पुरुष ही क्यों न हों। इन कार्यालयों में महिलाएं भी आ सकती हैं।

नियम तो 50 हजार जुर्माने का है...हुआ तो कुछ नहीं
लैंगिक अपराध को रोकने के लिए समितियों का गठन नहीं करने पर विभागों पर 50 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। दोबारा में अर्थदंड दोगुना हो जाएगा, लेकिन इतने पुराने आदेश के बाद भी विभाग सोए हैं। हैरत की बात यह है कि साल पुराने आदेश पर अमल न होने के बाद भी न तो किसी पर कोई कार्रवाई हुई न ही जुर्माना डाला गया।

समाज कल्याण अधिकारी को बना दिया था समिति का अध्यक्ष
तत्कालीन जिला प्रोबेशन अधिकारी ने नियम कायदे ताक पर रख समाज कल्याण अधिकारी को समिति का अध्यक्ष बना दिया था, जबकि नियम है कि इसका एनजीओ या फिर सोशल वेलफेयर संस्था को अध्यक्ष बनाया जाना है। अधिकारी को अध्यक्ष बनाने से जांच प्रभावित हो सकती है। ऐसे में दोबारा अध्यक्ष पद के लिए नामित होने के लिए फाइल डीएम के पास भेजी गई है। माना जा रहा है कि जल्द ही गठन किया जा सकता है।

एक हजार के करीब गठित होंगी समितियां
मामले को शासन ने भी गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। हाल में ही शामली से आईं नवागत जिला प्रोबेशन अधिकारी मोनिका राणा इसे लेकर गंभीर हैं। बुधवार शाम इसी मसले पर विभाग की निदेशक संदीप कौर ने बैठक की, जिसमें उन्होंने जल्द से जल्द समितियों के गठन पर जोर दिया। यह भी कहा कि इसमें किसी अधिकारी को अध्यक्ष नहीं बना सकते। निदेशक ने कहा कि जिले में सरकारी, निजी संस्थान, कार्यालय आदि में मिलाकर करीब एक हजार समितियां गठित होंगी।

विशाखा गाइडलाइन के तहत सुप्रीम कोर्ट का आदेश काफी पुराना है। अब ज्यादा जोर देना शुरू हुआ है। फाइल डीएम के पास भेजी गई है। फाइल आते ही इस पर तेजी से काम शुरू किया जाएगा। उम्मीद है अगले सप्ताह से समिति बनने लगेंगी। कलेक्ट्रेट में डीएम की ओर से गठित कमेटी में दो-चार कर्मचारी ही हैं। हर विभाग को अपनी समिति गठित करनी है। समिति गठन के बाद ऐसे मामलों की जानकारी के लिए विभागों से रिपोर्ट मांगी जाएगी- मोनिका राणा, जिला प्रोबेशन अधिकारी।

03 सितंबर 2012, 11 मार्च 2012 लोकसभा से पारित हुआ कानून
26 फरवरी 2013 को राज्यसभा से पास हुआ था

22 अप्रैल 2013 को कानून को सहमति दी गई थी
9 दिसंबर 2013 को कानून लागू कर दिया गया था

05 सदस्य होंगे एक समिति में महिला-पुरष मिलाकर

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