पद्मश्री दिलशाद हुसैन : दिल की हसरत है, मुरादाबाद को मिले हस्तशिल्प अकादमी

पद्मश्री सम्मान दिखाते दिलशाद हुसैन।
आशुतोष मिश्र, अमृत विचार। 79 वसंत देख चुके हस्तशिल्प व पद्मश्री दिलशाद हुसैन नई पीढ़ी को अपनी अनूठी विरासत सौंपने को बेकरार हैं। उनकी दिली तमन्ना व हसरत है कि जिंदगी के शेष दिनों में पीतलनगरी के बीचोंबीच एक हस्तशिल्प अकादमी को उसके पूरे वजूद में देख सकें। पद्मश्री पाने के बाद वह अब मुरादाबाद में हस्तशिल्प अकादमी या नेशनल टेक्निकल इंस्टीट्यूट की स्थापना के लिए ही काम करेंगे। पीतलनगरी को नये पन्नों में दर्ज कराने के लिए प्राण-प्रण से जुटेंगे।
अमृत विचार से बातचीत में दिलशाद ने दिल खोल कर बात की। कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दरियादिली का ताउम्र शुक्रगुजार रहूंगा। ऐसा यादगार, अद्भुत व अनूठा अवसर दिलाने में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ.जफर इस्लाम हमसफर बने। गृह मंत्री अमित शाह की मुहब्बत, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उत्साहवर्धन मेरी पूंजी है। लखनऊ में आयोजित प्रदर्शनी में प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र ने सपनों को परवाज दिया। तभी प्रधानमंत्री मेरे बनाए गए मटके को जर्मनी लेकर गए। मेरे पास अब इस मटकी की मांग बढ़ गई है, जिसका हमने नाम मोदी मटका रखा है। दिलशाद बताते हैं कि छह से 10 इंच की ऊंचाई में मटका तैयार कर रहा हूं। जर्मनी में मेरी दस्तकारी का उपहार बांटकर प्रधानमंत्री ने मेरी आंखों की चमक बढ़ा दी।
एक झलक: प्रमुख उपहार
- वर्ष 2023 पद्म श्री पुरस्कार राष्ट्रपति के हाथों
- वर्ष 2017 में शिल्प गुरू पुरस्कार भारत सरकार
- वर्ष 2012 में राष्ट्रीय पुरस्कार वस्त्र मंत्रालय केंद्र सरकार
- वर्ष 2004 में राज्य हस्तशिल्प पुरस्कार यूपी सरकार
इन्ग्रेवियन (उल्चाई)
शिल्पकारी-दस्तकारी की यह शैली मुगलकाल से स्थापित है। देश में सिकन्दरा, ताजमहल के अलावा इरान, सीरिया, इराक में इसके उदाहरण हैं। काबा के गिलाफ पर इस कला के प्रमाण हैं। इरान, सीरिया और इटली (यूनान) उल्चाई शैली की पसंद के लिए जाना जाता है। इतिहासकार प्रो.अजय अनुपम इस बात की पुष्टि करते हैं।
यहां 1937 में मिला पहला पुरस्कार
64 राज्य पुरस्कार, 12 राष्ट्रीय अवार्ड, चार शिल्पगुरू खिताब वाले मुरादाबाद की झोली में आया है पद्मश्री। यह देश का पहला और इकलौता पुरस्कार है। शहर के प्रसिद्ध हस्तशिल्पकार उस्ताद दिलशाद हुसैन को इस कार्य के लिए पद्मश्री दी गयी है। जिससे यहां की दस्तकारी को दुनिया में इतराने का असरदार मौका मिला है। मुरादाबाद की माटी को शिल्पकारी में यह गौरव अंग्रेजी जमाने से हासिल है। साल 1937 में इसी माटी के लाल मोहम्मद तुगलक उस्ताद को देश स्तर पर शिल्पगुरु की पदवी मिल चुकी है।
चार बार राष्ट्रपति भवन तक पहुंचे
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों पद्मश्री पाने के लम्हों को दिल में कैद कर चुके दिलशाद बातचीत के दौरान भावुक हो गए। कहते हैं कि वैसे तो मुझे चार बार राष्ट्रपति भवन जाने का अवसर मिला। मेरी हसरत है कि मुरादाबाद में लोग दस्तकारी सीखने आएं। मेरी इच्छा है कि मुरादाबाद वह केंद्र बने, जहां की नई पीढ़ी हस्तशिल्प के वैश्विक बाजार में पीतलनगरी का नाम रोशन करे।
दिलशाद के पास है लंबा सिलसिला
अपने दादा अब्दुल हमीद की परंपरा को आगे बढ़ाने में जुटे दिलशाद के खून में शिल्पकारी है। इनके पिता शमशाद हुसैन को यह कला नहीं आती थी। उनके भाई और दिलशाद के चाचा कल्लू अंसार इस विधा के जानकार थे। दिवंगत बीवी रुखशाना बेगम व बेटी उज्जमा खातून को भारत सरकार ने पुरस्कृत किया है।
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