विश्व गौरैया दिवस : Banda में गौरैया संरक्षण में रंग ला रहा शोभाराम का प्रयास, गौरैया की संख्या में बढ़ोतरी
बांदा में गौरैया संरक्षण में शोभाराम का प्रयास रंग ला रहा।
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बांदा में गौरैया संरक्षण में शोभाराम का प्रयास रंग ला रहा। बीते कई साल से साथियों संग अभियान में जुटे। गौरैया की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही।
बांदा, अमृत विचार। घरों की बालकनी और छत पर चहचहाने वाली गौरैया नामक पक्षी की प्रजाति धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है। हालांकि अभी तक यह गणना नहीं हो पाई है कि इनकी संख्या कितनी घटी है, लेकिन इनका कम संख्या में नजर आना ही इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यदि इनका संरक्षण न किया गया तो आने वाले समय यह पक्षी किस्से और कहानियों तक ही सीमित हो जायेगा। बीते कुछ वर्षों से पक्षी बचाओ अभियान में जुटे समाजसेवी शोभाराम कश्यप का प्रयास रंग ला रहा है।
गौरैया की घटती आबादी निश्चित रूप से चिंता की बात है, क्योंकि यह पर्यावरण को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाती है। दरअसल बदले परिवेश में घरों की जगह गगनचुंबी इमारतों ने ले ली है। आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरैया के रहने की कोई गुंजाइश नहीं है। इधर, मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगें उनकी जान लेने के लिए आमादा हैं। ये तंरगें गौरैया की दिशा खोजने वाली प्रणाली एवं उनकी प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालती हैं। ज्यादा तापमान भी गौरैया के लिए जानलेवा होता है।
गौरतलब है कि प्रदूषण, विकिरण, कटते पेड़ों आदि के कारण शहरों का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। इन कारणों से गौरैया खाना और घोंसले की तलाश में शहरों से पलायन कर रही हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में भी इन्हें चैन नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि गांव-देहात तेजी से शहर में तब्दील हो रहे हैं। तेरह वर्ष पहले 20 मार्च 2010 को नेचर फॉर एवर सोसाइटी के प्रयासों से इस नन्ही सी चिड़िया गौरैया के संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाने को देश भर में पहली बार विश्व गौरैया दिवस मनाया गया था। वर्ष 2012 में सरकार ने गौरैया को राजकीय पक्षी का दर्जा दिया। बिहार सरकार भी इसे इसे राजकीय पक्षी घोषित कर चुकी है।
वहां गौरैया के संरक्षण के लिये विशेष अभियान चलाया जा रहा है। विश्व गौरैया दिवस पर सोमवार को पक्षी बचाओ अभियान में जुटे समाजसेवी शोभाराम कश्यप ने फॉरेस्ट विभाग के रेंजर अशोक कुमार सिंह एवं फॉरेस्ट विभाग के गार्ड शुभम के साथ फॉरेस्ट विभाग की नर्सरी, रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज, महिला महाविद्यालय समेत तमाम जगह वहां के पेड़ों पर इन घोसलों को बंधवाया। साथ ही इन घोसलों में गौरैया के लिये दाना व पानी का प्रबंध कर गौरैया को बचाने का संकल्प दिलाया। इस अवसर पर मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ.मुकेश यादव व डॉ.अनूप, राजकीय महिला महाविद्यालय में प्रधानाचार्या दीपाली गुप्ता, डॉ.सबीहा रहमानी, राजेन्द्र कबीर, संतोष कबीर, जावेद खान आदि मौजूद रहे।
खुद अपने हाथों से तैयार करते पक्षियों के घोंसले
बांदा में पक्षी बचाओ अभियान में बीते कई वर्षों से जुटे समाजसेवी शोभाराम कश्यप गौरैया के संरक्षण के लिये अपने ही खर्च पर फलों के लिये इस्तेमाल होने वाले लकड़ी के खोखे से घोंसले तैयार करते आ रहे हैं। वे अपने घर पर ही खाली समय में फलों के बॉक्स आरी से काटकर इन्हें एक विशेष संरचना देते हुए कील जड़कर तैयार करते हैं। गौरैया पक्षी को लुभाने के लिये उनके इस विशेष घर (घोंसले) के लिये उन्होंने हरे रंग का चुनाव किया है। वे अपने कुछ चुनिंदा साथियों के साथ पूरे साल इस अभियान में डटे नजर आते हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार गौरैया की संख्या पहले के मुकाबले बढ़ी है।