Mirza Ghalib Death Anniversary: मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यूँ रात भर नहीं आती..पढ़िए मिर्ज़ा ग़ालिब के बेहतरीन शेर

नई दिल्ली। मिर्जा गालिब उर्दू के महान शायर थे। वह 27 दिसंबर 1797 को आगरा में पैदा हुए। गालिब की जिंदगी संघर्षों से भरी रही। उन्होंने अपनी जिंदगी में अपने कई अजीजों को खोया। अपनी जिंदगी गरीबी में गुजारी। इसके बावजूद गालिब के शेर ने लोगों के दिलों को छुआ। गालिब 15 फरवरी 1869 को इस दुनिया से अलविदा कह गए।
आधे मुसलमान मिर्ज़ा ग़ालिब
एक जानकारी के मुताबिक ये किस्सा ग़दर के दिनों का है। उस वक्त जब दिल्ली से मुसलमान बाहर की तरफ जा रहे थे, लेकिन मिर्ज़ा ग़ालिब वहीं रहे थे. इन्हीं दिनों उनका सामना एक अंग्रेज कर्नल से हो गया। अंग्रेज कर्नल ने मिर्ज़ा ग़ालिब के कपड़े देखकर उनसे सवाल किया,क्या आप मुसलमान हैं? ये सवाल सुनकर मिर्ज़ा ग़ालिब ने ऐसा जवाब दिया कि अंग्रेज कर्नल हैरान और हक्का बक्का रह गया।
दरअसल मिर्ज़ा ग़ालिब अपनी हाजिर जवाबी के लिए तो मशहूर थे ही। इस दौरान भी उन्होंने अंग्रेज कर्नल को तुरंत जवाब देते हुए कहा कि मैं आधा मुसलमान हूं। ये जवाब सुनकर अंग्रेज कर्नल ने अगला सवाल दागा और पूछा कि ऐसा कैसे कि आप आधे मुसलमान हैं? इसके जवाब में मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा, हां, क्योंकि मैं शराब तो पीता हूं लेकिन सुअर नहीं खाता। मिर्ज़ा ग़ालिब का यह जवाब सुनकर अंग्रेज कर्नल अपनी हंसी नहीं रोक पाया।
गधे आम नहीं खाते
मिर्ज़ा ग़ालिब और आम (Mango) का भी बहुत गहरा रिश्ता है. ग़ालिब को आम बहुत ज्यादा पसंद थे। यही वजह है उनकी जिंदगी में कई दिलचस्प घटनाएं आम से जुड़ी हुई भी हैं। एक बार की बात है कि मिर्ज़ा ग़ालिब अपने कुछ दोस्तों के साथ खा रहे थे। इसी दौरान वहां से एक गधा गुजरा। जो आम खाए बगैर निकल गया। ये देखकर उनके दोस्तों ने पूछा कि मियां आम में ऐसा क्या है इसे तो गधे भी नहीं खाते। तो मिर्ज़ा ग़ालिब ने जवाब दिया,"मियां, जो गधे हैं वो आम नहीं खाते।
मीठे होने चाहिए, बहुत होने चाहिए
एक बार मौलाना फ़ज़्ल-ए-हक़ और कुछ और मोहतरम अफ़राद, आम की अलग-अलग क़िस्मों के बारे में बात कर रहे थे। मिर्ज़ा ग़ालिब भी वहां मौजूद थे। जब सबने अपनी-अपनी राय दे दी, तब मौलाना फ़ज़्ल-ए-हक़, मिर्ज़ा की तरफ़ मुड़े और उनकी राय पूछी। ग़ालिब मुस्कुराए और कहा, मेरे दोस्त, मेरी नज़र में, आम में महज़ दो चीज़े ज़रूरी होती हैं। वो बहुत मीठे होने चाहिए, और वो बहुत सारे होने चाहिए।
मिर्जा गालिब की बर्सी पर पढ़िए उन्ही के लिखे हुए कुछ बेहतरीन शेर
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा,
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं।
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है।
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया,
वर्ना हम भी आदमी थे काम के।
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है,
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं।
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे,
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे।
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और।
मौत का एक दिन मुअय्यन है,
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती।
कब वो सुनता है कहानी मेरी,
और फिर वो भी ज़बानी मेरी।
करने गए थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला,
की एक ही निगाह कि बस ख़ाक हो गए।
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी,
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती।
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