मिर्जा गालिब
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Mirza Ghalib Death Anniversary: मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यूँ रात भर नहीं आती..पढ़िए मिर्ज़ा ग़ालिब के बेहतरीन शेर
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By Himanshu Bhakuni
नई दिल्ली। मिर्जा गालिब उर्दू के महान शायर थे। वह 27 दिसंबर 1797 को आगरा में पैदा हुए। गालिब की जिंदगी संघर्षों से भरी रही। उन्होंने अपनी जिंदगी में अपने कई अजीजों को खोया। अपनी जिंदगी गरीबी में गुजारी। इसके...
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राजस्थान: गालिब के जीवन एवं शायरी पर आधारित 'गुफ्तगू' कार्यक्रम का आयोजन
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By Om Parkash chaubey
अजमेर। राजस्थान के अजमेर में मशहूर उर्दू शायर मिर्जा गालिब के जीवन एवं शायरी पर आधारित ' गुफ्तगू ' कार्यक्रम आयोजित किया गया। अजमेर के वैशाली नगर स्थित अजयमेरू प्रेस क्लब सभागार में रविवार शाम आयोजित गुफ्तगू कार्यक्रम में पत्रकार,...
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
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By Amrit Vichar
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है आख़िर इस दर्द की दवा क्या है हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार या इलाही ये माजरा क्या है मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ काश पूछो कि मुद्दआ’ क्या है जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है ये परी-चेहरा लोग कैसे …
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ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे…
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By Amrit Vichar
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे हसरत ने ला रखा तिरी बज़्म-ए-ख़याल में गुल-दस्ता-ए-निगाह सुवैदा कहें जिसे फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा अफ़्सून-ए-इंतिज़ार तमन्ना कहें जिसे सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से डालिए वो एक मुश्त-ए-ख़ाक कि सहरा कहें जिसे है …
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक…
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By Amrit Vichar
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन ख़ाक हो जाएँगे हम …
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मिर्जा गालिब तो बांदा के कर्जदार थे
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By Amrit Vichar
मिर्जा गालिब के ऊपर इधर बहुत कुछ लिखा गया है। मगर किसी ने यह नही लिखा कि मिर्जा गालिब ने कलकत्ता जाने के लिए बांदा मे कर्ज लिया था वह भी एक बार नही दो बार मगर मरते दम तक उस कर्ज को चुकाया नही। मिर्जा को कर्ज की क्या जरूरत पड़ी। कलकत्ता क्यों जा …
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बहराइच: पुरानी पेंशन बहाली, ‘जुमला’ या ‘मास्टरस्ट्रोक’?
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By Amrit Vichar
बहराइच। “तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना, कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता”, मिर्जा गालिब का यह शेर आजकल उत्तर प्रदेश के चुनाव में सही साबित हो रहा है। चुनाव में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, विकास तथा सुशासन जैसा मुद्दा प्रमुखता से छाया हुआ है। इसी बीच में पुरानी …
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अपनी जिंदगी मे हुए गुनाह को खुलेआम कुबूल करने वाले कुछ ऐसे थे ‘मिर्जा गालिब’…
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By Amrit Vichar
ग़ालिब अथवा मिर्ज़ा असदउल्ला बेग़ ख़ान का जन्म 27 दिसम्बर, 1797 ई. को आगरा में हुआ था, जिन्हें सारी दुनिया ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ के नाम से जानती है। ग़ालिब उर्दू-फारसी के प्रख्यात कवि रहे हैं। इनके दादा मिर्ज़ा कौकन बेग खां समरकन्द से भारत आए थे। बाद में वे लाहौर में मुइनउल मुल्क के यहां नौकर …
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