हल्द्वानीः नक्शे पर दिल्ली में मंथन, बनभूलपुरा में बढ़ी दिलों की धड़कन

हल्द्वानी, अमृत विचार। विवादित 29 एकड़ भूमि पर बसे बनभूलपुरा के 4365 परिवारों की धड़कनें तेज हो गई हैं। इधर, सात फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए बनभूलपुरा के पक्षकारों ने दिल्ली में डेरा जमा लिया है। पक्षकार पैरवी कर रहे अधिवक्ताओं से मिले और इस मामले को लेकर ठोस रणनीति तैयार की है। जबकि प्रशासन ने भी अपना पक्ष मजबूती से रखने के लिए रेलवे, राजस्व, नगर निगम और वन विभाग की संयुक्त टीम के साथ विवादित भूमि पर पुन: सर्वे किया है।
बता दें, कि इस मामले में रविशंकर जोशी ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 29 एकड़ भूमि से कब्जे को हटाने के आदेश दिए थे। हालांकि इससे पहले ही कई लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए। इन्हीं में से एक समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अब्दुल मतीन सिद्दीकी हैं। अब 7 फरवरी को इस मामले में सुनवाई है। मतीन कुछ और दस्तावेजों के साथ दिल्ली में अपने वकील के साथ पहुंच चुके हैं। जहां एक बार फिर से नक्शे पर मंथन किया गया, लेकिन तारीख नजदीक आते ही बनभूलपुरा में लोगों की धड़कनें बढ़ने लगी हैं। लोग दुआ कर रहे हैं, ताकि सुप्रीम कोर्ट उनके पक्ष में फैसला दे।
इधर, संयुक्त टीम ने भी बनभूलपुरा में दोबारा पैमाइश कर अपने दस्तावेज मजबूत कर लिए हैं। सात फरवरी को सभी विभाग सुप्रीम कोर्ट को बताएंगे कि बनभूलपुरा में किसकी कितनी जमीन है। जबकि कुछ दिन पूर्व प्रशासन के साथ हुई बैठक में सुप्रीम कोर्ट के याचिकाकर्ता अब्दुल मलिक ने वर्ष 1907 का नक्शा दिखाया था और कहा था कि आजादी के बाद भारी बारिश से गौला नदी में आए उफान से रेलवे की पटरी बह गई थी। इस पर रेलवे की पटरी पूर्व की बजाय करीब 150 फिट आबादी की ओर बिछाई गई। इसलिए पैमाइश में रेलवे की पुरानी पटरी की स्थिति ली जाए।
यह थी याचिका
9 नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने रविशंकर जोशी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 10 सप्ताह के भीतर रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि जितने भी अतिक्रमणकारी हैं, उनको रेलवे पीपी एक्ट के तहत नोटिस देकर जनसुनवाई करे। रेलवे की तरफ से कहा गया था कि हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण किया गया है जिस पर करीब 4365 लोग मौजूद हैं। हाईकोर्ट के आदेश पर इन लोगों को पीपी एक्ट में नोटिस दिया गया, जिनकी रेलवे ने पूरी सुनवाई कर ली है। किसी भी व्यक्ति के पास जमीन के वैध कागजात नहीं पाए गए। इनको हटाने के लिए रेलवे ने जिला अधिकारी नैनीताल से दो बार सुरक्षा दिलाए जाने हेतु पत्र दिया गया।
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घरों के नीचे मिली थीं रेलवे की पटरियां
रेलवे स्टेशन की भूमि से कब्जा खाली कराने के लिए डेढ़ दशक पहले वृहद स्तर पर अभियान चलाया गया था। पूरे इलाके को छावनी में बदल दिया गया था। दो दिन तक चले अभियान में काफी बड़े इलाकों को खाली कराने में सफलता मिली थी। कब्जा हटाने के दौरान लोगों के घरों के नीचे से रेलवे की पटरी तक निकली थी। बाद में अधिकारियों की ढिलाई के चलते पुन: रेलवे की जमीन पर कब्जा हो गया।
2016 में लगे सीमांकन के लिए खंभे
जिस जमीन पर रेलवे ने अपना दावा किया था, उस पर वर्ष 2016 में रेलवे ने सीमांकन खंभे लगाए गए थे। यह खंभे चोरगलिया रोड, लाइन नंबर 17, नई बस्ती, इंदिरा नगर में अतिक्रमण को चिह्नित करते हुए लगाए गए थे। इसके बाद कब्जा खाली कराने की तैयारी की गई, लेकिन मामला कोर्ट में पहुंचने के कारण कवायद आगे नहीं बढ़ सकी और अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट पहले सरकार का पक्ष सुनेगी।
साल की पहली सुबह मिला बनभूलपुरा को नोटिस
रेलवे के अतिक्रमण की जद में आ रहे लोगों को नए साल के सुबह घर खाली करने का नोटिस मिला था। प्रशासन ने अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित करा कर ये नोटिस जारी किए थे। जिसके बाद से बनभूलपुरा में माहौल गर्म हो गया। लोग खौफजदा थे कि अब उनके सिर से छत छिन जाएगी, लेकिन अब लोगों को सुप्रीम कोर्ट के जरिये एक और मौका मिला है।
विरोध के आगे ठिठक गए थे प्रशासन के पांव
विवादित भूमि पर काबिज लोगों को नोटिस जारी करने के बाद प्रशासन ने चंद दिनों की मोहलत दी और जमीन खाली करने को कहा। लोगों ने भी इसकी प्रतिक्रिया ठीक उसी दिन दी, जब प्रशासन को साथ लेकर रेलवे अपनी भूमि पर पहुंचा। हजारों लोगों की भीड़ ने प्रशासन का रास्ता रोक लिया। भारी पुलिस की मौजूदगी के बावजूद प्रशासन कदम आगे नहीं बढ़ा सका।
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