शीर्ष अदालत की समिति ने अंडमान में पाम ऑयल की बागवानी फिर से किये जाने की जरूरत पर सवाल उठाये

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने कहा है कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह में अतीत में पाम ऑयल की बागवानी बढ़ाया जाना एक पूर्ण वाणिज्यिक नाकामी साबित हुई है। साथ ही, इसने द्वीप समूह में इस वाणिज्यिक फसल को फिर से उगाने की जरूरत पर सवाल उठाये हैं।
शीर्ष न्यायालय को 12 जनवरी को सौंपे गये एक नोट में समिति ने कहा कि वन संरक्षण अधिनियम, 1980 का उल्लंघन करते हुए द्वीप समूह में लाल पाम ऑयल की बागवानी के लिए वन भूमि के उपयोग में बदलाव की कोई भी अनुमति सभी राज्यों में इसी तरह के कृषि उद्देश्यों को धड़ल्ले से बढ़ाएगी। समिति ने यह भी कहा कि पाम ऑयल बागवानी द्वीप समूह में वन भूमि के अतिक्रमण को बढ़ावा देगी।
साथ ही, यह भी सवाल किया कि पाम ऑयल का उत्पादन मुख्य भूमि पर क्यों नहीं किया जा सका। केंद्र शासित क्षेत्र प्रशासन ने जनवरी 2019 में उच्चतम न्यायालय का रुख कर अंडमान निकोबार द्वीप समूह में वन भूमि पर वाणिज्यिक एवं एकफसली बागवानी पर 2002 में लगाये गये न्यायालय के प्रतिबंध को रद्द करने का अनुरोध किया था।
शीर्ष न्यायालय ने समिति को प्रतिबंध हटाने और 16,000 हेक्टेयर वन भूमि को लाल पाम ऑयल बागवानी के उपयोग में लाने के केंद्र शासित क्षेत्र प्रशासन के प्रस्ताव पर जानकारी उपलब्ध कराने को कहा था।
शीर्ष न्यायालय को सौंपे गये समिति के नोट में कहा गया है, चूंकि प्रस्ताव का उद्देश्य देश में वनस्पति तेल की कमी को पूरा करना है, ऐसे में मुख्य भूमि पर पाम ऑयल का उत्पादन क्यों नहीं किया जा सकता, जहां पाम ऑयल के लिए बागवानी सफलतापूर्वक की गई है।
इसमें कहा गया है कि वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 के लागू होने से पहले अंडमान निकोबार द्वीप समूह में लाल पाम ऑयल की बागवानी किया जाना एक पूर्ण वाणिज्यिक नाकामी साबित हुई है। साथ ही, केंद्र शासित क्षेत्र प्रशासन की अर्जी अंडमान के वनों में नये सिरे से बागवानी के कारण को नहीं बताती है।
इसमें यह भी जिक्र किया गया है कि 16,000 हेक्टेयर क्षेत्र की वन भूमि, जहां पाम ऑयल की बागवानी किये जाने का प्रस्ताव है,उसकी पहचान नहीं की गई है और उसका सीमांकन नहीं किया गया है। आवेदन में महज यह कहा गया है कि घास भूमि का उपयोग इस उद्देश्य के लिए किया जाएगा।
हालांकि, अंडमान निकोबार द्वीप समूह में घास भूमि की उपस्थिति या इस तरह की घास भूमि की मौजूदगी का कोई संदर्भ नहीं दिया गया है। वर्ष 2021 में, केंद्र ने 11,040 करोड़ रुपये की लागत वाली राष्ट्रीय खाद्य तेल-पाम ऑयल मिशन की शुरूआत की थी, जिसका उद्देश्य पूर्वोत्तर और अंडमान निकोबार द्वीप समूह की अनुकूल जलवायु दशाओं के मद्देनजर वहां पाम ऑयल की बागवानी पर जोर देना है।
उल्लेखनीय है खाद्य तेल की मांग को पूरा करने के लिए भारत आयात पर निर्भर है और यह विश्व में इसका सबसे बड़ा आयातक है। केंद्र ने पिछले साल कहा था कि वर्ष 2020-21 के दौरान, भारत ने करीब 133.52 लाख टन खाद्य तेल का आयात किया, जिसपर करीब 80,000 करोड़ रुपये की लागत आई। कुल आयातित खाद्य तेल में पाम ऑयल की हिस्सेदारी करीब 56 प्रतिशत है। इसके बाद सोयाबीन तेल (27 प्रतिशत) और सूरजमुखी तेल (16 प्रतिशत) का स्थान है। देश में खाद्य तेल का उपभोग 250 लाख टन से अधिक है।
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