श्रम क्षेत्र में सुधार

देश में कई वर्षों से श्रम क्षेत्र में सुधारों की मांग की जाती रही है। यह मांग न सिर्फ उद्योगों की ओर से बल्कि समय-समय पर श्रमिक संगठनों की ओर से भी की जाती रही है। अब सरकार बहुप्रतीक्षित श्रम सुधारों को लागू करने जा रही है। व्यवसाय को सुगम बनाने तथा विदेशी निवेश को …
देश में कई वर्षों से श्रम क्षेत्र में सुधारों की मांग की जाती रही है। यह मांग न सिर्फ उद्योगों की ओर से बल्कि समय-समय पर श्रमिक संगठनों की ओर से भी की जाती रही है। अब सरकार बहुप्रतीक्षित श्रम सुधारों को लागू करने जा रही है। व्यवसाय को सुगम बनाने तथा विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए भी श्रम सुधारों को जरूरी माना जाता है।
भारत में श्रमिकों से संबंधित कई कानून हैं। कानूनों की अधिक संख्या न सिर्फ श्रमिकों के लिए वरन् उद्योगों के लिए भी समस्या उत्पन्न करती है। सरकार की योजना 44 श्रम कानूनों को चार संहिताओं (अधिनियमों)- मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक संबंध तथा व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा में परिवर्तित करने की है। कार्य अथवा श्रम व्यक्ति के दैनिक जीवन का अंग होता है और यह मनुष्य के रूप में उसकी गरिमा, कल्याण तथा विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
देश की प्रमुख सामाजिक-आर्थिक समस्या यह है कि इसके अधिकांश नागरिक बेहतर जीवनयापन के लिए संघर्षरत हैं। आर्थिक विकास का अर्थ केवल नौकरियों का सृजन ही नहीं है, बल्कि इसका संबंध कार्य स्थितियों या कार्य-दशाओं के सृजन से भी होता है। देश के कुल श्रम बल में से 41.19 प्रतिशत कृषि उद्योग में, 26.18 प्रतिशत उद्योग क्षेत्र में और 32.33 प्रतिशत सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं।
हाल ही में प्रकाशित आर्थिक सर्वेक्षण में इंगित किया गया है कि यदि न्यूनतम वेतन में 10 प्रतिशत की वृद्धि की जाती है तो यह ग्रामीण क्षेत्रों में 6.34 प्रतिशत रोज़गार में वृद्धि होती है, किंतु शहरी क्षेत्र की स्थिति ऐसी नहीं है। हालांकि न्यूनतम वेतन के प्रावधान के पश्चात् शहरी क्षेत्र में रोज़गार में वृद्धि होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
इसके अतिरिक्त श्रमिक वर्ग व्यक्तिगत, सामाजिक एवं आर्थिक मामलों के प्रति अधिक सशक्त भी होगा। हालांकि यह समझना भी आवश्यक है कि सरकार न्यूनतम वेतन के निर्धारण के समय किस प्रकार के मापदंड़ों का उपयोग करती है क्योंकि निश्चित वेतन श्रमिकों के लिए तभी लाभकारी होगा जब यह उचित मापदंड एवं बाज़ार के अनुरूप तय किया जाए।
भारत में अवस्थित बहुत से उद्योगों में श्रमिकों का वेतन भारत के अन्य प्रतिस्पर्द्धी देशों जैसे-चीन, वियतनाम, इंडोनेशिया से भी कम है, फिर भी इन देशों के निर्यात में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत इन देशों से सबक लेकर अपने श्रम कानूनों में और अधिक सुधार कर सकता है। हालांकि इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा किए गए प्रयास सराहनीय है, सरकार द्वारा विस्तृत एवं विखंडित श्रम कानूनों को एक साथ पिरोने का प्रयास किया गया है। स्पष्ट रूप से इन श्रम सुधारों से लगभग 50 करोड़ श्रमिकों व कर्मचारियों के लाभान्वित होने की संभावना हैं।