शास्त्र ने धर्म के तत्त्व को लोकजीवन के गहन संपर्क से प्राप्त किया और निरंतर प्राप्त करता रहा है!

धर्म और ज्ञान के क्षेत्र में न तो उसने वर्ण को ही महत्त्व दिया और न पुरुष को और न उम्र को ! साधना और आचरण का महत्त्व है ! शास्त्र का लोकतात्त्विक-अनुसंधान करने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि ब्राह्मण को ही उपदेश का अधिकार हो ,,ऐसी बात नहीं है ! महाभारत …
धर्म और ज्ञान के क्षेत्र में न तो उसने वर्ण को ही महत्त्व दिया और न पुरुष को और न उम्र को ! साधना और आचरण का महत्त्व है !
शास्त्र का लोकतात्त्विक-अनुसंधान करने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि ब्राह्मण को ही उपदेश का अधिकार हो ,,ऐसी बात नहीं है !
महाभारत के वनपर्व में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कथा है धर्मव्याध की ! यह व्याध मांसविक्रेता है ! और ब्राह्मण -पुत्र इसकी खोज करता है , और पूछते पूछते इसकी मांस की दूकान पर आता है और इससे प्रार्थना करता है , कि मुझे धर्म का उपदेश करो ! इस उपदेश को व्याधगीता भी कहा जाता है !
कहानी यों है कि ब्राह्मण -पुत्र शास्त्र का अध्ययन करता है और तपस्या भी करता है ! एक दिन एक पक्षी ने इस पर बीठ कर दी ,
तो ब्राह्मण -पुत्र के मन में विकार आया , उसने क्रोध से उस पक्षी को देखा और पक्षी जल कर जमीन पर गिर पड़ा !
ब्राह्मण -पुत्र ने सोचा कि यह मेरे तप और शास्त्रज्ञान का ही परिणाम है , अब मुझे सिद्धि मिल गयी है ! अब वह किसी ग्राम में गया और किसी द्वार पर नारायण हरि’ कह कर भिक्षा माँगी ! अन्दर से आवाज आयी – ठहरिए महाराज! ब्राह्मण -पुत्र ने थोड़ी देर खड़े होकर प्रतीक्षा की तथा फिर कहा नारायण हरि ! फिर अन्दर से आवाज आयी महाराज! ठहरिए – मैं अभी आ रही हूँ। जब तीसरी बार नारायण हरि’कहने पर भी कोई नहीं आया तो ब्राह्मण -पुत्र के मन में विकार आया उसने कहा कि तुझे पता नहीं, मैं कौन हूँ, मेरी अवमानना कर रही है तू?
तभी अन्दर से वह माँ बोली >> मुझे पता है ब्राह्मण -पुत्र ! लेकिन आप यह न समझना कि मैं वह पक्षी हूँ जिसको आप देखेंगे और वह जल जाएगा।ब्राह्मण -पुत्र तो विस्मित हो गया ! थोड़ी देर बाद माँ भिक्षा लेकर आई। ब्राह्मण -पुत्र बोला , माँ भिक्षा बाद में लूँगा , पहले आप वह रहस्य समझाइये कि यह सब आपने कैसे जाना ? माँ ने कहा, मेरे पास इतना समय नहीं है कि आपको बताऊँ। आप अपनी भिक्षा लीजिए और यदि आपको इस विषय में जानना है तो मिथिला में चले जाइए, वहाँ पर एक वैश्य रहते हैं, वे आपको बता देंगे
।ब्राह्मणपुत्र वैश्य के पास गया, वह अपने व्यवसाय में लगा हुआ था और वहाँ उसने वही जिज्ञासा की !
उसने देखा और कहा आइए! पण्डित जी! बैठ जाइए! वह बैठ गया। थोड़ी देर के बाद ब्राह्मण कहने लगा मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ। वैश्य ने कहा, जी हाँ – आपको उस स्त्री ने मेरे पास भेजा है क्योंकि आपने देखकर चिड़ा जला दिया है।
वैश्य ने भी कह दिया कि अभी तो मेरे पास समय नहीं, यदि बहुत जरूरी हो तो आप मांसविक्रेता व्याध के पास चले जाइये ! वह आपको सारी बात समझा देगा।
वह ब्राह्मणपुत्र व्याध के पास गया तो वह मांस काट-काट कर बेच रहा था। व्याध बोला – आइए पंडित जी! बैठिए! आपको सेठजी ने भेजा है। कोई बात नहीं, विराजिए। अभी मैं अपना काम कर रहा हूँ, बाद में आपसे बात करूँगा। ब्राह्मण बड़ा हैरान हुआ।
अब बैठ गया वहीं, सोचने लगा अब कहीं नहीं जाना, यहीं निर्णय हो जाएगा।
सायंकाल जब हो गयी तो व्याध ने अपनी दुकान बन्द की, पण्डित जी को लिया और अपने घर की ओर चल दिया। ब्राह्मण व्याध से पूछने लगा कि आप किस देव की उपासना करते हैं जो आपको इतना बोध है। उसने कहा कि चलो वह देव मैं आपको दिखा रहा हूँ। पण्डित जी बड़ी उत्सुकता के साथ उसके घर पहुँचे तो देखा व्याध के वृद्ध माता और पिता एक पंलग पर बैठे हुए थे। व्याध ने जाते ही उनको दण्डवत् प्रणाम किया। उनके चरण धोए, उनकी सेवा की और भोजन कराया।
पण्डित कुछ कहने लगा तो व्याध बोला – आप बैठिए, पहले मैं अपने देवताओं की पूजा कर लूँ, बाद में आपसे बात करूँगा। पहले मातृदेवो भव फिर पितृ देवो भव और आचार्य देवो भव तब अतिथि देवो भव ! आपका तो चौथा नम्बर है भगवन्!
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