पीलीभीत: जब अपनो ने नहीं दिया साथ तब थामा अखबार का हाथ

पीलीभीत: जब अपनो ने नहीं दिया साथ तब थामा अखबार का हाथ

पीलीभीत, अमृत विचार। बात है सन् 1997 की जब मां छोड़कर इस दुनिया से चलीं गईं। अपनो के आगे सहयोग के लिए हाथ फैलाए लेकिन कोई आगे नहीं आया। तब पेट पालने के लिए समाचार पत्र का सहारा लिया। आज पूरे 250 लोगों का परिवार है। हम बात कर रहे हैं…समाचार पत्र वितरक प्रवेश कुमार …

पीलीभीत, अमृत विचार। बात है सन् 1997 की जब मां छोड़कर इस दुनिया से चलीं गईं। अपनो के आगे सहयोग के लिए हाथ फैलाए लेकिन कोई आगे नहीं आया। तब पेट पालने के लिए समाचार पत्र का सहारा लिया। आज पूरे 250 लोगों का परिवार है। हम बात कर रहे हैं…समाचार पत्र वितरक प्रवेश कुमार की, जिन्होंने 20 वर्ष की उम्र से समाचार पत्र घरों तक पहुंचाना शुरू किया। जब किसी ने साथ नहीं दिया तब अखबार ने साथ दिया।

शहर के मोहल्ला बेनी चौधरी निवासी प्रवेश कुमार 51 वर्ष के हैं। ये माह में बिना छुट्टी लिए नियमित लोगों तक समाचार पत्र पहुंचाते हैं। पिछले 25 वर्षों से लोगों तक समाचार पत्र पहुंचाने का काम कर रहे हैं। प्रवेश के एक लड़का और एक लड़की है। बेटा मयंक अपनी इंटर की पढ़ाई कर रहा है और बेटी सुशांकी एक कंपनी में जॉब करती है। प्रवेश कुमार की पत्नी सुनीता रानी एक गृहणी हैं। बताते हैं कि सुबह साढ़े तीन बजे उठकर लोगों तक खबरों का संसार पहुंचाना इतना आसान नहीं होता।

सुबह साढ़े तीन बजे से पहले सुनीता को भी उठना पड़ता है। तब जाकर साइकिल सड़क पर उतरती है। तब शहर के मोहल्ला पंजाबियान, तखान, खकरा, आवास विकास, गोदावरी आदि में साइकिल फर्राते भरती है। प्रवेश कुमार बताते हैं कि पिता पोथीराम का देहांत तो बचपन में ही हो गया था। वहीं सन् 1997 में किसी कीड़े के काट लेने से उनकी मां विद्यावती का भी अकस्मात देंहात हो गया। तब उम्र 20 की थी। मां के एकदम जाने से वह बिल्कुल अकेले हो गए। तब जीविकोपार्जन के लिए अखबार डालना शुरू किया। आज अखबार की वजह से ही इस मुकाम तक पहुंचे हैं। कहते हैं कि हमें अपने काम को बताते हुए गर्व महसूस होता है।

कोरोना काल में बिछड़ गया परिवार
प्रवेश कुमार बताते हैं कि कोविड काल से पहले उनके पास 350 से ज्यादा लोगों तक परिवार था। लेकिन भयंकर कोविड के बाद यह परिवार 250 लोगों में सिमट कर रह गया। कोरोना काल में हर व्यापार पर असर पड़ा। लेकिन समाचार पत्र भी गहरा प्रभाव पड़ा। न जाने कितने जानने वाले इस दौर में बिछड़ गए।

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