शिवलिंग शिव का ही स्वरूप/प्रतीक व श्रृष्टि का निरूपक

विगत कुछ समय से बहुत ही सुनियोजित ढंग से हमारे धर्मग्रंथों में लिखे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर कलुषित करने का प्रयास चल रहा है। कुछ चीजें ऐसी भी होती है जिसे लोग ढंग से समझ नहीं पाते और अर्थ का अनर्थ हो जाता है। डीसी आज के समय में शिवलिंग की जो एक अवधारणा है …
विगत कुछ समय से बहुत ही सुनियोजित ढंग से हमारे धर्मग्रंथों में लिखे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर कलुषित करने का प्रयास चल रहा है। कुछ चीजें ऐसी भी होती है जिसे लोग ढंग से समझ नहीं पाते और अर्थ का अनर्थ हो जाता है। डीसी आज के समय में शिवलिंग की जो एक अवधारणा है वो भी बहुत ही भ्रामक है।
शिवलिंग के “शिवलिंग” कहलाने के पीछे कोई रहस्य, कथा या विज्ञान नही है। ये बहुत ही साधारण और सरल चीज है जिसे कुछ मूढ़ लोग मिथ्या प्रचार कर बहुत गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं। यही कारण है कि आज शिवलिंग का नाम आते ही लोग ये सोचते हैं कि इसका अर्थ भगवान शिव का “शिश्न” है। ये अत्यंत ही निंदाजनक और बिलकुल मिथ्या सोच है।
ऐसा इसीलिए क्योंकि आज कल लोगों के लिए “लिंग” का केवल एक ही अर्थ है। कदाचित इसी कारण आज जो शिवलिंग का आकार हमें देखने को मिलता है, उसे भी हम शिश्न से ही जोड़ देते हैं। किन्तु क्या आपने सोचा कि लिंग का वास्तविक अर्थ क्या है? इसे समझने के लिए हमें केवल थोड़े व्याकरण का ज्ञान होना ही पर्याप्त है।
हम सभी ने बचपन में “पुल्लिंग” एवं “स्त्रीलिंग” के विषय में पढ़ा है। तो क्या जब हम स्त्रीलिंग कहते हैं तो उसका अर्थ “स्त्रियों का शिश्न” होता है? नही ना। ये बहुत साधारण सी बात है। यहाँ लिंग का वास्तविक अर्थ है “प्रतीक”। पुल्लिंग पुरुषों का प्रतीक है और स्त्रीलिंग का अर्थ है स्त्रियों का प्रतीक। ठीक उसी प्रकार शिवलिंग का अर्थ है शिव का प्रतीक, ना कि उनका शिश्न।
अब यहाँ एक प्रश्न और भी आता है कि देवता तो कई हैं फिर शिवलिंग की आवश्यकता क्यों पड़ी? विष्णुलिंग या ब्रह्मलिंग की क्यों नही? इसका उत्तर शिव महापुराण में दिया गया है जो शंकर को शिव से अलग करता है। यही कारण है कि हमारे ग्रंथों में शिवलिंग का ही वर्णन है शंकरलिंग अथवा महेश्वरलिंग का नही।
इसे समझने के लिए हमें “शिव” और “शंकर” के भेद को समझना होगा। किन्तु फिर भी इस लेख में हम इन्होने के मूल अंतर को समझेंगे क्यूंकि शिवलिंग का रहस्य समझने के लिए इन दोनों को जानना आवश्यक है।
संक्षेप में समझें तो शिव स्वयंभू एवं निराकार हैं। उनका कोई रूप नही, वे स्वयं समस्त सृष्टि के प्रतीक हैं। उन्ही को सदाशिव भी कहते हैं। शिव पुराण के अनुसार जब भगवान ब्रह्मा और श्रीहरि विष्णु में प्रतिस्पर्धा हुई तो उनके मध्य अग्नि का एक अनंत रूप प्रकट हुआ।उस अग्नि स्वरूप शिव ने ही दोनों को आत्मज्ञान प्रदान किया।
पुराणों में शिव के अस्तित्व का वो पहला प्रमाण माना जाता है। उनका वही निराकार रूप शिव अथवा सदाशिव के रूप में जाना जाता है और उन्ही को भगवान ब्रह्मा एवं भगवान विष्णु ने प्रथम बार “शिवलिंग” अर्थात “कल्याण का प्रतीक” कहा। प्रतीक (लिंग) इसी कारण क्योंकि उनका कोई रूप ही नही था। उसी को “ज्योतिर्लिंग” भी कहा गया और आज भी भगवान शिव के प्रमुख प्रतीकों को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। ये कुल १२ हैं जिन्हे द्वादश ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। शिव क्या नहीं हैं वर्णन नहीं हो सकता है। शिव में रमना ही श्रेयस्कर कल्याण ही कल्याण।
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