विशाल रथ के आकार में बना हुआ कोणार्क का सूर्य मंदिर

विशाल रथ के आकार में बना हुआ कोणार्क का सूर्य मंदिर

उड़ीसा के पूर्वी तट पर, पुरी के पास कोणार्क नाम के कस्बे में स्थित “सूर्य मंदिर” अपनी भव्यता और अद्भुद वास्तु की वजह से पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है। सूर्य मंदिर एक बेहद विशाल रथ के आकार में बना हुआ है। इसलिए इसे “रथ मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। कोणार्क शब्द …

उड़ीसा के पूर्वी तट पर, पुरी के पास कोणार्क नाम के कस्बे में स्थित “सूर्य मंदिर” अपनी भव्यता और अद्भुद वास्तु की वजह से पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है। सूर्य मंदिर एक बेहद विशाल रथ के आकार में बना हुआ है। इसलिए इसे “रथ मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। कोणार्क शब्द कोण और अर्क से मिलकर बना है, जहां कोण का अर्थ कोना-किनारा एवं अर्क का अर्थ सूर्य से है। अर्थात सूर्य का कोना जिसे कोणार्क कहा जाता है। इसीलिए इस मंदिर को कोणार्क सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है। कोणार्क सूर्य मंदिर को गंगा राजवंश के प्रसिद्ध शासक राजा नरसिम्हादेव ने 1243-1255 ईसवी के बीच करीब 1200 मजदूरों की सहायता से बनवाया था।

बताया जाता है कि, इस विशाल मंदिर की नक्काशी करने और इसे सुंदर रुप देने में करीब 12 साल का लंबा समय लग गया था। इतिहासकारों के मुताबिक अफगान शासक मोहम्मद गौरी के शासनकाल में 13वीं शताब्दी में जब मुस्लिम शासकों ने भारत के उत्तरी पूर्वी राज्य एवं बंगाल के प्रांतों समेत कई राज्यों में जीत हासिल की थी, तब उस उमय तक कोई भी शासक इन ताकतवर मुस्लिम शासकों से मुकाबला करने के लिए आगे नहीं आया, तब हिन्दू शासन नष्ट होने की कगार पर पहुंच गया और ऐसी उम्मीद की जाने लगी कि उड़ीसा में भी हिन्दू सम्राज्य खत्म हो जाएगा। वहीं उस दौरान दिल्ली में सुल्तान इल्तुतमिश का शासन था, जिसकी मौत के बाद नसीरुद्दीन मोहम्मद को उत्तराधिकारी बनाया गया था और तुगान खान को बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया।

इसके बाद 1243 ईसवी में नरसिम्हा देव प्रथम और तुगान खान के बीच काफी बड़ी लड़ाई हुई। इस लड़ाई में नरसिम्हा देव ने मुस्लिम सेना को बुरी तरह खदेड़ कर जीत हासिल की। नरसिम्हा देव सूर्य देव के बहुत बड़े उपासक थे, इसलिए उन्होंने अपनी जीत की खुशी में सूर्य देव को समर्पित कोणार्क सूर्य मंदिर बनाने का फैसला लिया। इस विश्व प्रसिद्ध कोर्णाक सूर्य मंदिर का आकार एक भव्य और विशाल रथ की तरह है, जिसमे 24 विशाल पहिए लगे हुए हैं, जिसे 7 ताकतवर घोड़े खीचतें प्रतीत होते हैं। वहीं यह पहिए धूप-घड़ी का काम करते हैं और इनकी छाया से समय का अनुमान लगाया जाता है। इस मंदिर के 7 घोड़े हफ्ते के सभी सातों दिनों के प्रतीक माने जाते हैं, जबकि 12 जोड़ी पहिए दिन के 24 घंटों को प्रदर्शित करते हैं। इसके साथ ही इनमें लगीं 8 तीलियाँ दिन के आठों प्रहर को दर्शाती हैं।

काले ग्रेनाइट और लाल बलुआ पत्थर से बना यह एकमात्र ऐसा सूर्यमंदिर है, जो कि इसकी खास बनावट और भव्यता के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। इस अद्भुत मंदिर के निर्माण में कई कीमती धातुओं का इस्तेमाल किया गया है। इस सूर्य मंदिर में सूर्य भगवान की बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था में बनी तीन-अलग-अलग मूर्तियां भी बनी हुईं हैं, जिन्हें उदित सूर्य, मध्यांह सूर्य और अस्त सूर्य भी कहा जाता है। उड़ीसा के मध्ययुगीन वास्तुकला का अदभुत नमूना कोणार्क सूर्य मंदिर से कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुईं हैं।

एक प्रचलित धार्मिक कथा के मुताबिक – भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्बा ने एक बार नारद मुनि के साथ बेहद अभद्रता के साथ बुरा बर्ताव किया था, जिसकी वजह से उन्हें नारद जी ने कुष्ठ रोग ( कोढ़ रोग) होने का श्राप दे दिया था। वहीं इस श्राप से बचने के लिए ऋषि कटक ने नारद मुनि के सूर्यदेव की कठोर तपस्या और आराधना करने की सलाह दी थी। जिसके बाद श्री कृष्ण के पुत्र सांबा ने चंद्रभागा समुद्र तट पर मित्रवन के पास करीब 12 सालों तक सूर्य का कठोर तप किया था।

कोणार्क का सूर्य मंदिर उड़ीसा के मध्ययुगीन वास्तुकला का एक सर्वश्रेष्ठ नमूना है। इस मंदिर को कलिंग वास्तुकला की उपलब्धि का सर्वोच्च बिंदु माना जाता है क्योंकि इस प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर की वास्तुकला काफी हद तक कलिंगा मंदिर की वास्तुकला से मिलती-जुलती है। इस मंदिर को इसकी खूबसूरत कलाकृति और अनूठी वास्तुशिल्प के लिए यूनेस्को (UNESCO) की वर्ल्ड हेरिटेज सूची में रखा गया है। अगर आप प्राचीन वास्तु कला और पुरातात्विक स्थलों में रुचि रखते हैं, तो कोणार्क का सूर्य मंदिर देखना, आपके लिए एक रोचक और सुखद अवसर होगा।

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