Holi Celebration 2022: होली के रंग-जीवन के संग

Holi Celebration 2022: होली के रंग-जीवन के संग

भारत की ख्याति पर्व और त्योहारों के देश के रूप में है। प्रत्येक पर्व और त्योहार के पीछे परंपरागत लोक मान्यताएं एवं कल्याणकारी संदेश निहित हैं। इन त्योहारों में होली का विशेष महत्व है। इस्लाम के अनुयायियों में जो महत्व ईद का, ईसाइयों में क्रिसमस का है, वही महत्व हिंदुओं में होली का है। यह …

भारत की ख्याति पर्व और त्योहारों के देश के रूप में है। प्रत्येक पर्व और त्योहार के पीछे परंपरागत लोक मान्यताएं एवं कल्याणकारी संदेश निहित हैं। इन त्योहारों में होली का विशेष महत्व है। इस्लाम के अनुयायियों में जो महत्व ईद का, ईसाइयों में क्रिसमस का है, वही महत्व हिंदुओं में होली का है। यह इस बात का सूचक भी है कि अब चारों तरफ वसंत ऋतु का सुवास फैलने वाला है। यह पर्व शिशिर ऋतु की समाप्ति तथा ग्रीष्म ऋतु के आगमन का प्रतीक है।

वसंत के आगमन के साथ ही फसल पक जाती है और किसान फसल काटने की तैयारी में जुट जाते हैं। वसंत के आगमन की तिथि फाल्गुनी पूर्णिमा पर होली का आगमन होता है, जो मनुष्य के जीवन को और उल्लास से प्लावित कर देता है। होली का पर्व मनाने की पृष्ठभूमि में अनेक पौराणिक कथाएं एवं सांस्कृतिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथा की दृष्टि से इस पर्व का संबंध प्रहलाद और होलिका की कथा से जोड़ा जाता है। एक कथा और भी प्रचलित है कि जब भगवान श्री कृष्ण ने दुष्टों का दमन कर गोपबालाओं के साथ रास रचाया, तब से होली का प्रचलन शुरू हुआ।

श्री कृष्ण के संबंध में एक कथा यह भी प्रचलित है कि जिस दिन उन्होंने पूतना राक्षसी का वध किया, उसी दिन हर्ष में गोकुल वासियों ने रंगोत्सव मनाया। लोकमानस में रचा-बसा होली का पर्व भारत में हिंदू मतावलंबी जिस उत्साह के साथ मनाते हैं, उनके साथ अन्य समुदायों के लोग भी घुलमिल जाते हैं, जिसे देखकर यही लगता है कि यह पर्व विभिन्न संस्कृतियों को एकीकृत कर आपसी एकता, सद्भाव और भाईचारे का परिचय दे रहा है। फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन लोग घरों से लकड़ियां इकट्ठा करते हैं तथा समूहों में खड़े होकर होलिका दहन करते हैं। होलिका दहन के अगले दिन प्रातः काल से दोपहर तक फाग खेलने की परंपरा है।

प्रत्येक आयु वर्ग के लोग रंगों के इस त्यौहार में भागीदारी करते हैं। इस पर्व में लोग भेदभाव को भुलाकर एक-दूसरे को अबीर और गुलाल से रंग देते हैं। पारिवारिक सदस्यों के बीच भी उत्साह के साथ रंगों का यह पर्व मनाया जाता है। जिंदगी जब सारी खुशियों को स्वयं में समेटकर प्रस्तुति का बहाना मांगती है, तब प्रकृति मनुष्य को होली जैसा त्योहार देती है। होली हमारे देश का एक विशिष्ट सांस्कृतिक और आध्यात्मिक त्योहार है। अध्यात्म का अर्थ है- मनुष्य का ईश्वर से संबंधित होना या स्वयं का स्वयं से संबंधित होना, इसीलिए होली मानव का परमात्मा से एवं स्वयं का स्वयं से साक्षात्कार का पर्व भी है।

असल में होली बुराइयों के विरुद्ध उठा एक प्रयत्न है, इसी से जीवन जीने का नया अंदाज मिलता है, औरों के दुख दर्द को बांटने का एक बहाना मिलता है और बिखरी मानवीय संवेदनाओं को जोड़ने का एक सूत्र मिलता है। होली का उत्सव अपने साथ कई रंगों को लेकर आता है। ये रंग खुशियों का प्रतीक होते हैं। होली के रंग अपने आप में बहुत खास होते हैं। हर रंग के अपने अलग ही मायने होते हैं। होली के रंगों की दुनिया बड़ी ही लुभावनी होती है। प्रत्येक रंग का अपना एक अर्थ और महत्व होता है। रंगों का मनुष्य के शरीर से ही नहीं उसकी, मनः स्थिति से भी गहरा रिश्ता है। रंग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर अपना प्रभाव डालते हैं।

होली का त्योहार उस समय आता है, जब मौसम में रंगों की बहार होती है। पृथ्वी अपने शीतकालीन उदासी को त्याग देती है और फिर से खिलना शुरू कर देती है, मानों इस परिवर्तन को चिह्नित करने के लिए, होली भारतीय परिदृश्य में रंग भरती है और जीवन के उत्सव को आमंत्रित करती है। होली के रंग जीवन शक्ति का प्रतीक हैं, जो मानव जाति को अद्वितीय बनाते हैं। होली वसंत का भी विधान है। नए फूलों के चमकीले रंग, अपने लाल-सोने के रंग के साथ गर्मियों के सूरज की चमक, गुलाल के रंगों से सजी होली को जीवंत कर देते हैं।
दरअसल मनुष्य का जीवन अनेक कष्टों, विपदाओं और चुनौतियों से भरा हुआ है।

वह दिन-रात अपने जीवन की इस आपाधापी में समाधान ढूंढने में जुटा हुआ है। इन्हीं आशाओं और निराशाओं के क्षणों में जब उसका मन व्याकुल होने लगता है, ऐसे में होली जैसे पर्व उसके जीवन में आशा का संचार करते हैं। होली का पर्व भेदभाव को भूलने का संदेश देता है। साथ ही यह मानवीय संबंधों में समरसता का विकास करता है। होली का पर्व शालीनता के साथ मनाते हुए इसके कल्याणकारी संदेश को व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में चरितार्थ किया जाना परम आवश्यक है, तभी इस पर्व का मनाया जाना सार्थक सिद्ध होगा।

मीता गुप्ता