शाहजहांपुर: पिछले डेढ़ दशक में नगर विधानसभा में जिलाध्यक्ष तनवीर खां का विकल्प नहीं तलाश सकी सपा

शाहजहांपुर, अमृत विचार। समाजवादी पार्टी पिछले डेढ़ दशक में नगर विधानसभा में जिलाध्यक्ष तनवीर खां का विकल्प नहीं तलाश सकी। या यूं कहें कि पार्टी ने किसी अन्य पर भरोसा करना मुनासिब नहीं समझा। यही कारण रहा कि पार्टी में नगर अध्यक्ष से लेकर जिलाध्यक्ष, नगर पालिका परिषद में चेयरमैन और अब विधानसभा चुनाव में …
शाहजहांपुर, अमृत विचार। समाजवादी पार्टी पिछले डेढ़ दशक में नगर विधानसभा में जिलाध्यक्ष तनवीर खां का विकल्प नहीं तलाश सकी। या यूं कहें कि पार्टी ने किसी अन्य पर भरोसा करना मुनासिब नहीं समझा। यही कारण रहा कि पार्टी में नगर अध्यक्ष से लेकर जिलाध्यक्ष, नगर पालिका परिषद में चेयरमैन और अब विधानसभा चुनाव में लगातार उन्हीं पर दांव लगाया जाता रहा।
एक ओर जहां पार्टी अपने जीते विधायकों के टिकट काटकर दूसरों को मौका देने में गुरेज नहीं करती, वहीं लगातार पराजय झेलने वाले को ही हर बार उम्मीदवार बनाना किसी के गले नहीं उतर रहा। लोगों का कहना है कि आखिर कितनी बार एक व्यक्ति पर भरोसा जताया जाता रहेगा। जलालाबाद में दमदार और अनुभवी विधायक शरदवीर सिंह का टिकट तब काट दिया गया, जब 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर चलने के बावजूद शरदवीर सिंह ने अपनी सीट निकाली थी।
क्षेत्रीय जनता का मानना है कि अगर शरदवीर सिंह को ही टिकट मिला होता तो परिणाम कुछ और ही होता, लेकिन पार्टी ने अपने जीते विधायक का टिकट काटकर दल बदलने में माहिर व्यक्ति को टिकट देकर उस पर भरोसा जताया। वहीं, शहर सीट से पार्टी जिलाध्यक्ष तनवीर खां को तब टिकट दिया गया, जब इससे पहले के लगातार दो चुनाव वह हार चुके थे, इसके बावजूद उन पर भरोसा जताया गया। इसके बावजूद वह सीट निकालने में कामयाब नहीं हो सके और अपने व पार्टी के खाते में तीसरी हार भी डाल बैठे।
सपाइयों में भी इस बात की चर्चा आम है कि जब शहर की जनता तनवीर खां को नगरपालिका चुनाव के लिए उपयुक्त मानती है, तो उन्हें अब नगर निगम के चुनाव की तैयारी करनी चाहिए, विधानसभा चुनाव में वह कब तक हारते रहेंगे। पार्टी को उनका विकल्प तो तलाशना ही होगा। यहां बता दें कि तनवीर खां पहले सपा के नगर अध्यक्ष हुआ करते थे, बाद में उन्हें जिलाध्यक्ष भी बना दिया गया। इसके बाद पालिका अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के लिए उन्हीं को उपयुक्त समझा गया।
यह अलग बात है कि वह पालिका अध्यक्ष के चुनाव में कभी पराजित नहीं हुए और लगातार भाजपा को शिकस्त देते रहे। सक्रिय राजनीति में आने के बाद तनवीर खां के कार्य-व्यवहार में काफी अंतर भी देखने को मिला, जिसके बलबूते ही वह सुरेश खन्ना जैसे भाजपा के दिग्गज को कड़ी टक्कर देते रहे हैं। लोगों का तर्क है कि टक्कर देना और जीतना दोनों अलग-अलग बातें हैं। इस ओर पार्टी को ध्यान पड़ेगा।
इसे भी पढ़ें-
शाहजहांपुर: जितिन प्रसाद ने ब्राह्मण चेहरे के रूप में बीजेपी में बखूबी निभाई अपनी जिम्मेदारी