गले में बंधी तिब्बती घंटियों के सुर, हिमालयी मवेशियों की जिंदगी बचाने में मददगार

हिमालयी मवेशियों के गले में बंधी तिब्बती घंटियां और उनकी आवाज किसी शंखनाद से कम नहीं होती है। यही वजह है कि इन तिब्बती घंटियों की ध्वनि काफी तेज होने के बावजूद कानों को मधुर लगती है। तिब्बत व्यापार करीब-करीब बंद होने के बाद से अब यह घंटियां गुजरात समेत नेपाल, चीन से मंगाई जाने …
हिमालयी मवेशियों के गले में बंधी तिब्बती घंटियां और उनकी आवाज किसी शंखनाद से कम नहीं होती है। यही वजह है कि इन तिब्बती घंटियों की ध्वनि काफी तेज होने के बावजूद कानों को मधुर लगती है। तिब्बत व्यापार करीब-करीब बंद होने के बाद से अब यह घंटियां गुजरात समेत नेपाल, चीन से मंगाई जाने लगी हैं। एक वक्त ऐसा भी था जब मवेशियों के गले में लटकी घंटियों से उनके मालिक की जमींदारी या साहूकारी का अंदाजा लगाया जाता था।
मवेशियों के झुंड में कोई भेड़ या बकरी अमटीकर होती है। अमटीकर का अर्थ मार्गदर्शक से है। बाहरी छोरों पर चलने वाले मवेशियों के गले में बंधी घंटियां मध्यम ध्वनि की और झुंड से अलग चलने वाले मवेशियों के गले की घंटियों की ध्वनि उच्च होती है। इससे चरवाहे के लिए यह अनुमान लगाना आसान हो जाता है कौन सा मवेशी चरागाह में वापस आया या नहीं।
हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाला हाजी नाम का कुत्ता जो घात लगाकर इन मवेशियों का शिकार करता है। हाजी दिखने में पालतू कुत्तों की तरह होता है। यह पूंछ लहराते हुए झुंड के नजदीक आ जाता है और मौका मिलते ही मवेशियों का शिकार करता है। झुंड के कुत्ते के गले में घंटी बंधी होने से बिना घंटी के कुत्ते जैसे दिखने वाले इस जानवर को पहचानना मवेशियों और चरवाहों के लिए आसान हो जाता है। बिना घंटी के कुत्तों (हाजी) को देखकर भेड़-बकरी खतरा महसूस कर एक छोर से दूसरे छोर को भागते हैं जिसे चरवाहों की भाषा में बिदकना कहा जाता है। जिसके चरवाहे भी सतर्क हो जाते हैं। और हाजी से मवेशियों की सुरक्षा करने के लिए कदम उठाते हैं।
ऐसे में हिमालयी क्षेत्रों में मवेशियों के गले में बंधी घंटियों की आवाज न केवल मवेशी बल्कि चरवाहों के लिए भी फायदेमंद साबित होती हैं। पहाड़ की ठंडी हवाओं के बीच घंटियों की आवाज वातावरण में संगीत के सुरों को घोल देती है।