इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित बयान पर सुप्रीम कोर्ट का संज्ञान, टिप्पणी पर कहा 'असंवेदनशील और अमानवीय'
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अमृत विचार। उत्तर प्रदेश में नाबालिक से रेप की कोशिश के मामले में इलाहाबाद कोर्ट द्वारा दी गई विवादित टिप्पणी को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने उस टिप्पणी पर रोक लगा दी है जिसमें ये कहा गया था कि छाती पकड़ना, पजामा के नाड़े को खींचना कोई अपराध नहीं। कोर्ट ने ये माना है कि इलाहाबाद कोर्ट द्वारा दी गई ये टिप्पणी बेहद असंवेदनशील और अमानवीय है। कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए यूपी सरकार, केंद्र और अन्य को नोटिस जारी किया है।
पीठ ने जमकर लगाई फटकार
इस मामले की सुनवाई और फैसला न्यायमूर्ति BR गवई की अध्यक्षता वाली पीठ करेगी। न्यायमूर्ति की ओर से इसे पूरी तरह असंवेदनशील माना है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हमे कहते हुए दुःख हो रहा है कि इस फैसले को लिखते समय असंवेदनशीलता बरती गई , पीठ में शामिल जस्टीस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह ने कहा कि यह फैसला अचानक नहीं सुनाया गया था बल्कि इसे सुरक्षित रखा गया और सोच समझ के चार महीने बाद सुनाया गया। इसके पीछे दिमाग का इस्तेमाल किया गया।'
वहीं, मामले पर सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि आमतौर पर हम इस स्तर पर आकर स्थगन देने में टालमटोल करते है, लेकिन यहां दी गई टिप्पणियां अमानवीय और कानून के दायरे से बाहर है। इसीलिए हम इनमें स्थगन लगाते है।
क्या था पूरा मामला
बता दें कि इलाहबाद कोर्ट के एक जज ने कहा था कि स्तनों को पकड़ना और इसके पैजामे का नाडा खींचना रेप या रेप के प्रयास अपराध में नहीं आता है। जबकि ऐसा अपराध किसी भी महिला के खिलाफ हमला या फिर आपराधिक बल के प्रयोग के दायरे में आता है। जिसका उद्देश्य निर्वस्त्र करना है। ये आदेश जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने दो व्यक्तियों की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका पर दिया था। कासगंज के एक स्पेशल जज के आदेश को चुनौती देते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
इलाहबाद हाईकोर्ट के इस बयान की काफी ज्यादा आलोचना हुई थी। साथ ही कई बड़े नेताओ, कानूनी विशेषज्ञों ने इस पर नाराजगी जतायी थी। रेप के आरोपों पर इस तरह के बयान की परिभाषा तय करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के जजो से कानून के जानकर ने संयम बरतने को कहा था। उनसे अपील की गई कि वे इस तरह के बयान न दें। जनता में इससे विश्वास की कमी आती है।
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