लखीमपुर-खीरी: चुनावी रण- हवा में उड़ रहे क्षेत्रीय मुद्दे राष्ट्रवाद हुआ हावी

लखीमपुर-खीरी: चुनावी रण- हवा में उड़ रहे क्षेत्रीय मुद्दे राष्ट्रवाद हुआ हावी

लखीमपुर-खीरी,अमृतविचार। मतदान की तारीख नजदीक आते ही जिले में स्थानीय मुद्दों का असर कम होने लगा है। अव क्षेत्रीय मुद्दों पर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का मुद्दा भारी पड़ता दिखाई पड़ने लगा है। मतदाता राष्ट्रवाद को तरजीह देने के मूड में है। इससे जिले में चुनावी समीकरण भी अब तेजी से बदलते नजर आ रहे हैं। …

लखीमपुर-खीरी,अमृतविचार। मतदान की तारीख नजदीक आते ही जिले में स्थानीय मुद्दों का असर कम होने लगा है। अव क्षेत्रीय मुद्दों पर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का मुद्दा भारी पड़ता दिखाई पड़ने लगा है। मतदाता राष्ट्रवाद को तरजीह देने के मूड में है। इससे जिले में चुनावी समीकरण भी अब तेजी से बदलते नजर आ रहे हैं।

हालांकि जिले की आठों सीटों में से सात सीटों पर भाजपा और सपा के बीच कड़ा मुकाबला है। वहीं सदर सीट पर बसपा प्रत्याशी की पकड़ भी काफी मजबूत होती दिख रही है। इस सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई होने के आसार बढ़ गए हैं। उत्तर प्रदेश का जिला लखीमपुर खीरी भारत-नेपाल सीमा पर बसा है। तराई का यह जिला हरे भरे जंगलों से भी आच्छिदत हैं।

इस जिले में घाघरा, शारदा, मोहना, सुहेली, सरयू सहित कई छोटी नदियां भी निकलती हैं। कभी काफी पिछड़े रहे लखीमपुर खीरी जिले में लखीमपुर सदर, निघासन, मोहम्मदी, श्रीनगर, धौरहरा, पलिया, कस्ता और गोला विधानसभा है। इनमें गोला, निघासन और पलिया विधानसभा का अधिकांश क्षेत्र दुधवा नेशनल पार्क और नदियों से घिरा हुआ है।

नेपाल सीमा से सटे होने के कारण पलिया, धौरहरा और निघासन का इलाका बाढ़ प्रभावित रहता है। यहां हर साल नदियां जमकर कहर बरपाती हैं। सभी विधानसभा क्षेत्रों में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दे हावी रहते हैं। दशकों से निघासन विधानसभा की सबसे बड़ी समस्या पचपेड़ी घाट पुल है।

पुल न होने से लोगों को करीब 25 किलोमीटर का अतिरिक्त सफर तय करना पड़ता है। हर चुनाव में बाढ़ कटान के साथ पचपेड़ी पुल निर्माण का मुद्दा हावी रहा है। दशकों से इन मुद्दों को हल कराने का झांसा देकर चुनाव जीतकर प्रत्याशी संसद से लेकर विधानसभा पहुंच जाते हैं, लेकिन आज तक यह मुद्दे हल नहीं हो सके। स्थिति ज्यों की त्यों बनी हैं।

दशकों से बाढ़-कटान का धौरहरा विधानसभा में भी प्रमुख मुद्दा है। इस विधानसभा को दो नदियां घाघरा और शारदा प्रभावित करती है। चुनावों की आहट होते ही बाढ़-कटान सहित क्षेत्रीय मुद्दे हर चुनाव में जोरशोर से उठते हैं। इस बार इस बार भी विधानसभा चुनाव में भी अब तक स्थानीय व क्षेत्रीय मुद्दे छाए थे। जिले में चौथे चरण में चुनाव होना है। आठों विधानसभा के लिए 23 फरवरी को वोट डाले जाएंगे।

मतदान के सिर्फ दो दिन बचे हैं। ज्यों-ज्यों मतदान की तिथि नजदीक आ रही है। मतदाता भी क्षेत्रीय व स्थानीय मुद्दों से हटकर अब राष्ट्रवाद की तरफ रूख कर रहे हैं। हालांकि प्रत्याशी उनका ध्यान क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दों की तरफ खींचने की कोशिश कर रहे हैं। अमृतविचार ने मतदाताअ ों को कुदेरने की कोशिश की तो विधानसभा निघासन के गांव राजापुर निवासी रमेश कुमार कहते हैं कि बाढ़, कटान, पुल-पुलिया यह तमाम समस्याएं तो पूरे क्षेत्र में हैं हीं।

धीरे-धीरे समस्याएं कुछ समस्याएं हल भी हो रही हैं, लेकिन इन समस्याओं से ज्यादा महत्वपूर्ण राष्ट्रवाद है। ग्राम बथुआ निवासी उमाशंकर वर्मा कहते हैं कि हर बार सांसद-विधायक मुद्दों पर वोट लेकर जनता को छलते हैं। हमें तो नहीं लगता है कि पचपेड़ी घाट का पुल कभी भी बन पाएगा। हम लोग इस बार स्थानीय मुद्दों से हटकर राष्ट्र की सुरक्षा और देश के हित को देख रहे हैं।

विधानसभा श्रीनगर के गांव तेंदुआ निवासी रामदेवी से जब यह पूछा गया कि वोट किसको देंगी यह तो बोली यह वह नहीं बताएंगी, लेकिन मतदान केंद्र पर जाकर वोट जरूर देंगी। वोट उसी को देंगी जो देश की दिशा और दशा बेहतर कर सके। पलिया विधानसभा के गांव त्रिकोलिया पढुवा निवासी अंजलि वाजपेई कहते हैं। क्षेत्रिय मुद्दे हैं, लेकिन यह मुद्दे इस चुनाव में कोई खास असर नहीं डाल पा रहे हैं। क्षेत्रीय मुद्दों के साथ ही राष्ट्रवाद के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए वोट देने का मन बनाया है।

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