बहराइच: पुरानी पेंशन बहाली, ‘जुमला’ या ‘मास्टरस्ट्रोक’?

बहराइच। “तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना, कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता”, मिर्जा गालिब का यह शेर आजकल उत्तर प्रदेश के चुनाव में सही साबित हो रहा है। चुनाव में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, विकास तथा सुशासन जैसा मुद्दा प्रमुखता से छाया हुआ है। इसी बीच में पुरानी …
बहराइच। “तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना, कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता”, मिर्जा गालिब का यह शेर आजकल उत्तर प्रदेश के चुनाव में सही साबित हो रहा है। चुनाव में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, विकास तथा सुशासन जैसा मुद्दा प्रमुखता से छाया हुआ है। इसी बीच में पुरानी पेंशन की बहाली के मुद्दे को सूबे के प्रमुख विपक्षी दल ने अपने घोषणापत्र में शामिल करके इसे चर्चा में ला दिया है।
एक अप्रैल 2005 को समाप्त कर दी गई थी पुरानी पेंशन
वास्तविकता यह है कि किसी भी शिक्षक और कर्मचारी के सेवानिवृत्त के बाद स्तरीय जीवन जीने के लिए पेंशन सर्वाधिक जरूरी है। एक अप्रैल 2005 के बाद से ही प्रदेश के शिक्षक कर्मचारियों की पुरानी पेंशन को समाप्त करके राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली एनपीएस लागू कर दिया गया है। इसमे निहित व्यवस्था को लेकर शुरू से ही शिक्षक कर्मचारी आशंकित और क्षुब्ध रहे हैं।
पुरानी पेंशन को बहाल करने का किसी ने नहीं किया प्रयास
उनके द्वारा पुरानी पेंशन बहाली के लिए समय-समय पर सरकारों से मांग भी की जाती रही और आंदोलन भी किया गया लेकिन सरकार के द्वारा सिर्फ आश्वासन ही दिया गया। सरकारों द्वारा पुरानी पेंशन बहाली की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया। वस्तुतः राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली में कर्मचारियों को अपने आवण्टित प्रान खाते में वेतन का 10 प्रतिशत अंशदान जमा करना होता है और सरकार के द्वारा 14 प्रतिशत अंशदान दिया जाता है। इसमे कर्मचारियों को निश्चित पेंशन की गारण्टी नही है। यह पूरी तरह स्टॉक मार्केट और बीमा कम्पनियों पर निर्भर है।राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली में कर्मचारियों की पारिवारिक पेंशन भी समाप्त हो जाती है ।
राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली में कर्मचारियों के अंशदान और सरकारी अंशदान के कुप्रबंधन ने इस पूरी योजना को खोखला और सन्दिग्ध सिद्ध कर दिया है। सही समय पर न तो सरकारी अंशदान मिलता है और न ही समयानुसार इसके ब्याज की पोस्टिंग होती है।
नई व्यवस्था से नाराज दिख रहे हैं शिक्षक कर्मचारी…
पुरानी पेंशन समाप्त होने के बाद से ही शिक्षक कर्मचारियों के बीच में नयी व्यवस्था के विरोध में संघर्ष और आक्रोश निरन्तर बना हुआ है। यह बात महत्वपूर्ण है कि जब 1 अप्रैल 2004 में केंद्र सरकार द्वारा पुरानी पेंशन को खत्म किया गया तो वहां पर भाजपा सरकार थी और जब उत्तर प्रदेश में पुरानी पेंशन व्यवस्था को समाप्त किया गया उस समय समाजवादी पार्टी की सरकार थी।
पुरानी पेंशन की समाप्ति के समय दलों द्वारा विरोध भी नहीं किया गया। पूरे भारत के अन्य राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश में 2005 से ही पुरानी पेंशन को खत्म करके राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली को स्वीकार कर लिया गया। जबकि अन्य कई राज्यों इसको 2005 के बाद के वर्षों से लागू किया गया।
सात दिसंबर 2016 को शिक्षकों, कर्मचारियों ने किया था जोरदार प्रदर्शन
कर्मचारी और शिक्षक संगठनों द्वारा सरकारों से लगातार यह मांग किया जाता रहा है कि पुरानी पेंशन प्रणाली को ही जारी रखा जाए। केवल पेंशन की लड़ाई लड़ने वाले एक संगठन के द्वारा पुरानी पेंशन बहाली के लिए लखनऊ में 7 दिसम्बर 2016 को लखनऊ में विधानसभा के सामने प्रदर्शन किया गया था।
पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारी शिक्षकों और कर्मचारियों पर किये गए लाठीचार्ज में एक शिक्षक की मृत्यु हो गई थी। उस समय सूबे में समाजवादी पार्टी की ही सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे लेकिन उस समय सरकार की इस मुद्दे पर कोई संवेदना उतपन्न नही हुयी।
2018 में शिक्षक कर्मचारियों ने लखनऊ में पुरानी पेंशन बहाली के लिये बड़ा प्रदर्शन किया। सरकार द्वारा इसके सम्बन्ध में उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया लेकिन परिणाम शून्य रहा। वर्ष 2021 में एक बार फिर कर्मचारी शिक्षको के पूरे प्रदेश के संगठनों ने मिलकर इसके लिये फिर प्रदर्शन किया लेकिन उसका भी कोई परिणाम नही निकल सका।
आज भारतीय जनता पार्टी की सरकार है लेकिन जब यह दल विपक्ष में था तब इसी दल के वर्तमान समय मे मुख्यमंत्री और वर्तमान उपमुख्यमंत्री के द्वारा पुरानी पेंशन बहाली के लिए सरकार को पत्र लिखा गया था। लेकिन सत्ता में आते ही उनके लिए यह मुद्दा प्राथमिकता में नहीं रह पाया। अब समाजवादी पार्टी के द्वारा इस मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में शामिल करना प्रदेश के कर्मचारी शिक्षकों के मन में एक उम्मीद का जरूर संचार कर रहा है।
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