पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर: उत्तराखंड की इस गुफा में छुपा है कलयुग के अंत का रहस्य, 33 करोड़ देवी देवताओं का संसार

हल्द्वानी, अमृत विचार। देवभूमि उत्तराखंड को देवों की वास स्थली यूं ही नहीं कहा जाता। यहां चार धामों के साथ ही सिद्ध पीठ और रहस्यमयी गुफाओं में विराजमान देवी-देवताओं का संसार देश-दुनिया के लोगों को बरबस ही अपनी ओर खींचता है। ऐसा ही एक रहस्यमयी देवस्थल पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में भी है। यहां पाताल भुवनेश्वर …
हल्द्वानी, अमृत विचार। देवभूमि उत्तराखंड को देवों की वास स्थली यूं ही नहीं कहा जाता। यहां चार धामों के साथ ही सिद्ध पीठ और रहस्यमयी गुफाओं में विराजमान देवी-देवताओं का संसार देश-दुनिया के लोगों को बरबस ही अपनी ओर खींचता है।
ऐसा ही एक रहस्यमयी देवस्थल पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में भी है। यहां पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर हर किसी के लिए श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र है। समुद्र तल से 90 फीट नीचे स्थित इस मंदिर और गुफा का जिक्र पुराणों में मिलता है। मान्यता है कि इस गुफा की खोज आदि जगत गुरु शंकराचार्य ने की थी। गंगोलीहाट के भुवनेश्वर गांव में स्थित यह गुफा प्रवेश द्वार से 160 मीटर लंबी और 90 फीट गहरी है।

आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी पाताल भुवनेश्वर गुफा की खोज
पौराणिक कथाओं के अनुसार , सर्वप्रथम त्रेतायुग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्णा ने की थी। स्कंदपुराण के अनुसार , पाताल भुवनेश्वर में स्वयं भगवान शिव निवास करते हैं। उसके बाद द्वापर युग मे पांडवों द्वारा इस गुफा की खोज मानी जाती है। कहा जाता है कि कलयुग में पांडवो ने यहाँ चौपड़ का खेल खेला था। पाताल भुवनेश्वर की मान्यताओं के मुताबिक, कलयुग में इसकी खोज आदि जगत गुरु शंकराचार्य ने की थी। इसके बाद कत्यूरी औ चंद राजाओ ने इसे खोज इसका निर्माण कराया। 2000 में उत्तराखंड बनने के बाद 2007 में से इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है।
ब्रह्मकमल से भगवान गणेश की मूर्ति पर गिरती हैं बूंदें
मान्यता है कि यहां भगवान गणेश का कटा हुआ सिर रखा है। पौराणिक कथाओं में बताया जाता है कि भगवान् शिव ने क्रोध में आकर गणेश जी का सिर धड से अलग कर दिया था। इस दृश्य को देखकर माता पार्वती को गुस्सा आ गया और उन्हीं के कहने पर भगवान गणेश के धड़ पर हाथी का सिर लगाया गया। लेकिन जो सिर उनके शरीर से अलग किया गया था, उसको भगवान शिव ने इस गुफा में रखा था। इस गुफा में गणेश का कटा हुआ सिर मूर्ति के रूप में स्थापित है इसी शिलारूपी मूर्ति के उपर 108 पंखुड़ियों वाला ब्रह्मकमल है। इस ब्रह्मकमल से पानी की दिव्य बूंदे भगवान गणेश के शिलारुपी मूर्ति पर गिरती है। कहा जाता है कि उस ब्रह्मकमल को शिव ने ही स्थापित किया है।

पाताल भुवनेश्वर की रहस्यमयी गुफा
गुफा में प्रवेश करने के लिए तीन फीट चौड़ा और चार फीट लंबा रास्ता है। गुफा में उतरने के लिए चट्टानों के बीच संकरे टेढ़ी मेढ़े रास्ते से ढलान पर उतरना पड़ता है। गुफा में उतरने पर शरीर खुद ब खुद गुफा के संकरे रास्ते में जगह बना लेता है। गुफा के अंदर जाने के लिए लोहे की जंजीरों का सहारा लेना पड़ता है यह गुफा पत्थरों से बनी हुई है। इसकी दीवारों से पानी रिसता है। गुफा में शेषनाग के आकर का पत्थर है उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे उन्होंने पृथ्वी को पकड़ रखा है। संकरे रास्ते से होते हुए इस गुफा में प्रवेश किया जा सकता है। जमीन के भीतर आठ से 10 फीट नीचे जाने पर गुफा की दीवारों पर हैरान कर देने वाली आकृतियां नजर आने लगती हैं। गुफा के ऊपर से नीचे की ओर आती शिवजी की विशाल जटाओं के साथ ही 33 करोड़ देवी देवताओं के दर्शन भी इस स्थान पर होते हैं। गुफा में पाताल भुवनेश्वर- ब्रह्मा, विष्णु और महेश के एक साथ दर्शन होते हैं।

पाताल भुवनेश्वर गुफा में कैमरा और मोबाइल ले जाने की अनुमति नहीं
पाताल भुवनेश्वर गुफा का वर्णन स्कन्द पुराण के मानस खंड के 103 अध्याय में मिलता है। इस गुफा के अंदर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के दर्शन होते है। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं। जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी बनी चट्टान में नजर आती है। इन सब के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी- बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में काल भैरव जीभ के दर्शन होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। गुफा के भीतर कैमरा और मोबाइल ले जाने की अनुमति नहीं है।
आगे बढ़ने पर समुद्र मंथन से निकला पारिजात का पेड़ नज़र आता है तो ब्रह्मा जी का पांचवे मस्तक के दर्शन भी यहां पर होते हैं। गुफा के दाहिनी ओर इसके ठीक सामने ब्रह्मकपाल और सप्तजलकुंड के दर्शन होते हैं जिसकी बगल में टेढ़ी गर्दन वाले एक हंस की आकृति दिखाई देती है। मानस खंड में वर्णन है कि हंस को कुंड में मौजूद अमृत की रक्षा करने का कार्य दिया गया था , लेकिन लालच में आकर हंस ने खुद ही अमृत को पीने की चेष्टा की जिससे शिव जी के श्राप के चलते हंस की गर्द हमेशा के लिए टेढ़ी हो गयी। कुल मिलाकर 160 मीटर लंबी पाताल भुवनेश्वर गुफा एक ऐसा स्थान है जहां पर एक ही स्थान पर न सिर्फ 33 करोड़ देवताओं का वास है बल्कि इस गुफा के दर्शन से चारों धाम- बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम, द्वारिकी पुरी के दर्शन पूर्ण हो जाते हैं।

कलयुग के अंत को लेकर पत्थर से संकेत
पाताल भुवनेश्वर अपने आप में एक दैवीय संसार को समेटे हुए है। धर्म में अगर आपकी जरा सी भी आस्था है तो आप भी जीवन में एक बार पाताल भुवनेश्वर गुफा के दर्शन अवश्य कीजिएगा। यकीन मानिए, आप महसूस करेंगे कि अगर इस गुफा के अंदर विराजमान दैवीय संसार को आप ने इसके दर्शन कर नहीं जाना तो मानो जीवन में कुछ अधूरा सा छूट गया है लगता है। इस गुफा में चारों युगों के प्रतीक रूप में 4 पत्थर स्थापित है (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग) इन चार पत्थरों को चार द्वारों का रूप माना गया है, जिनके नाम क्रमशः मोक्ष द्वार, पाप द्वार, रण द्वार, धर्म द्वार है। जिसमें से तीन युगों के प्रतीक तीन द्वार बंद हो चुके हैं। इनमें से धर्म द्वार जिसे कलयुग का प्रतीक माना जाता है। इस पत्थर की सबसे खास बात तो यह है कि ये पत्थर लगातार धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। इस गुफा के पत्थर को लेकर मान्यता है कि जब यह पत्थर गुफा की छत को छू लेगा उस दिन यह कलयुग का अंत हो जाएगा।

कैसे पहुंचे पाताल भुवनेश्वर गुफा
सड़क मार्ग से हल्द्वानी से पिथौरागढ़ की दूरी करीब 200 किमी है। पिथौरागढ़ से पाताल भुवनेश्वर की दूरी करीब 90 किमी है। पाताल भुवनेश्वर गुफा जाने के लिए रेल मार्ग से नजदीकी स्टेशन काठगोदाम है। वहां से टैक्सी से अल्मोड़ा पहुंचकर अल्मोड़ा से पाताल भुवनेश्वर गुफा जा सकते हैं। अल्मोड़ा से पाताल भुवनेश्वर की दूरी बेरीनाग मार्ग होते हुए 110 किमी है। अल्मोड़ा से पाताल भुवनेश्वर तक करीब चार घंटे का समय लगता है। हवाई मार्ग से पाताल भुवनेश्वर पहुंचने का निकटतम हवाई अड्डा नैनी सैनी हवाई अड्डा पिथौरागढ़ है।