याद उन बीते दिनों की, इस कदर आने लगीं…

याद उन बीते दिनों की, इस कदर आने लगीं…

याद उन बीते दिनों की, इस कदर आने लगीं। हमको बचपन की वही फिर, कुट्टियां भाने लगीं। आज लड़ते थे मगर फिर, दोस्ती कल से शुरू। आजकल की दोस्ती भी, आजमाने मे लगी। पकड़ उंगली मां-पिता की, थे बड़े ही शेर हम। आजकल तो बिल्लियाँ, हमको डराने में लगीं। हमको न चिंता फिकर थी, हो …

याद उन बीते दिनों की,
इस कदर आने लगीं।

हमको बचपन की वही फिर,
कुट्टियां भाने लगीं।

आज लड़ते थे मगर फिर,
दोस्ती कल से शुरू।

आजकल की दोस्ती भी,
आजमाने मे लगी।

पकड़ उंगली मां-पिता की,
थे बड़े ही शेर हम।

आजकल तो बिल्लियाँ,
हमको डराने में लगीं।

हमको न चिंता फिकर थी,
हो कहाँ, कैसे बचत?

आज तो ये जिंदगी बस,
है कमाने मे लगी।

रात-दिन मेहनत-कशी से,
न मिली दौलत हमें,
राजसी जो थी हमें,
उन दिन पुराने मे लगी।

आज दुख सुनकर यहाँ,
देता तसल्ली न कोई,
जो तसल्ली हमकों मां,
आंचल समाने मे लगी।

  • विकास मिश्र ‘खुटार’

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