साहित्य जगत ने खोया एक अनमोल रत्न, नहीं रहे डॉ. ओमप्रकाश केसरी 'पवननंदन'

बक्सर। जाने-माने साहित्यकार डॉ. ओमप्रकाश केसरी 'पवननंदन' का रविवार की सुबह उनके बंगाली टोला स्थित आवास पर निधन हो गया। वह करीब 75 वर्ष के थे। डॉ.पवननंदन कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपनी अमूल्य रचनाएँ देने वाले इस प्रख्यात साहित्यकार ने अपना पूरा जीवन साहित्य और समाज सेवा को समर्पित किया था।
डॉ. पवननंदन ने हिंदी और भोजपुरी में लगभग 50 पुस्तकों की रचना की थी। उनकी कहानियाँ, लघुकथाएँ, व्यंग्य, कविताएँ, ग़ज़लें और नाटक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी रचनाएँ समाज का एक जीता-जागता दस्तावेज मानी जाती हैं।उन्होंने कई नवोदित साहित्यकारों को मंच प्रदान किया और उनकी प्रतिभा को निखारने का कार्य किया।
साहित्य सेवा के साथ-साथ डॉ. ओमप्रकाश केसरी समाज सेवा में भी सक्रिय रहे। उन्होंने अपने देहदान की घोषणा पहले ही कर दी थी, जिससे उनके शरीर के अंग जरूरतमंद लोगों के काम आ सकें।उनका यह निर्णय समाज के प्रति उनकी गहरी संवेदनशीलता को दर्शाता है। उनकी पत्नी का पहले ही निधन हो चुका था। वे अपने पीछे पुत्र-पुत्री, नाती-पोतों सहित भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं।
डॉ. पवननंदन के निधन पर वरिष्ठ साहित्यकार रामेश्वर प्रसाद वर्मा, गणेश उपाध्याय, डॉ. शशांक शेखर, डॉ. महेंद्र प्रसाद, राजा रमण पांडेय, बजरंगी मिश्रा, डॉ. श्रवण कुमार तिवारी, अतुल मोहन प्रसाद, अशोक कुमार केशरी, देहाती पंडित, दयानंद केशरी, दीपक केशरी, शिव बहादुर पांडेय प्रीतम, सुरेंद्र कुमार और मन्नु मद्धेशिया मीना सिंह, कंचन देवी सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने गहरा शोक व्यक्त किया।
डॉ. ओमप्रकाश केसरी 'पवननंदन' को राष्ट्रीय स्तर पर 100 से अधिक सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए थे।उन्हें वाराणसी में 2015 और कोलकाता में 2016 में 'लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड' से नवाजा गया था।इसके अलावा, उन्हें 'विद्यावाचस्पति (पी.एच.डी.)' और 'विद्यासागर (डी.लिट्)' जैसी प्रतिष्ठित मानद उपाधियाँ भी प्राप्त हुई थीं।साहित्य, समाज और शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान अविस्मरणीय रहेगा।
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