दीपावली पर कुमाऊं में गन्ने व केले के पत्ते से लक्ष्मी बनाने की है ये अनूठी परंपरा, जानने के लिए पढ़िए पूरी खबर

गुंजन मेहरा, नैनीताल। दीपावली पर कुमाँऊ के सभी हिस्सों में ऐपण कला गन्ने व केले के पत्ते से लक्ष्मी बनाने की परंपरा अनूठी है। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए सरोवर नगरी नैनीताल में दीपावली के अवसर पर घर घर में ऐपण कला व लक्ष्मी बनाने की परम्परा दशकों से चली आ रही है और …
गुंजन मेहरा, नैनीताल। दीपावली पर कुमाँऊ के सभी हिस्सों में ऐपण कला गन्ने व केले के पत्ते से लक्ष्मी बनाने की परंपरा अनूठी है। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए सरोवर नगरी नैनीताल में दीपावली के अवसर पर घर घर में ऐपण कला व लक्ष्मी बनाने की परम्परा दशकों से चली आ रही है और नई पीढ़ी के युवा भी इस परंपरा में दिलचस्पी दिखा रहें है।
लोग दीपावली के दिन सुबह से ही मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए काफी उत्साहित रहते है साथ ही गेरू लाल व सफेद पेंट से लक्ष्मी के पैर बनाते। और दोपहर बाद से लक्ष्मी बनाना शुरू करते है और सायंकाल में लक्ष्मी माता का आतिशबाजी कर स्वागत करते है साथ ही पूजा अर्चना की जाती है। इस दौरान लोग दिए जलाकर अपने घरों को रोशन करतें है।
बता दें कि लक्ष्मी गन्ने के डंठल व केले के पत्ते से बनाई जाती है। बाजार से लक्ष्मी के चेहरे का प्रतिरूप लाया जाता है जिसमें केले के पत्ते व गन्ने की सहायता से उसे पूर्ण आकार से लक्ष्मी माता का रूप दिया जाता है। जिसके बाद लक्ष्मी माता को पारम्परिक परिधान से साज श्रंगार कर सजाया जाता है। यह मान्यता है कि जिस घर मे लक्ष्मी बेहद खूबसूरत होती है वह घर धन धान्य व सुख समृद्धि से परिपूर्ण होता है।
साथ ही बता दें कि लक्ष्मी पूजा के तीन दिनों तक गोवर्धन पूजा व भैया दूज तक लोग एक दूसरे की लक्ष्मी देखने घर घर जाते है। तीन दिन बाद लक्ष्मी माता को भावभीनी विदाई दी जाती है। इस दौरान लोग भावुक हो जाते है।