Chaitra Navratri 2025: माता की मूर्ति नहीं बल्कि शक्तिश्रीयंत्र की होती है पूजा, नवरात्री पर होता हैं आयोजन
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अमृत विचार। उत्तराखंड में हैं माता दुर्गा के शक्तिपीठों में से एक चंद्रबदनी शक्तिपीठ। मान्यता के अनुसार माता सती के बदन (धड़) का एक हिस्सा चन्द्रकूट पर्वत पर गिरा था। उस स्थान पर आज माता के शक्तिपीठ की स्थापना की गई। माता के इस शक्तिपीठ मंदिर में पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। समुद्र तल से 2277 मीटर ऊपर बसा माता के इस शक्ति पीठ से जुडी हैं कई मान्यताएं और इतिहास।
भगवान शिव के भ्रमण से शक्तिखंड की स्थापना
स्कन्द पुराण के अनुसार, माता सती ने अपने पिता द्वारा अपने पति भगवन शिव के हुए अपमान की वजह से ही हवन की अग्नि में अपना शरीर का दाह संस्कार कर दिया था। जिसके बाद शिव जी ने दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया था। इसके बाद वे माता सती का जला हुआ लेकर भगवान् शिव जगह जगह विचरण करने लगे थे इस तरह माता का शरीर के अंग जहा जहा गिरे वहां शक्तिपीठ की स्थापना हो गई।
मूर्ति नहीं श्रीयंत्र की होती हैं पूजा
माता सती का कटी भाग यानी कमर का हिस्सा जहा गिरा वही चंद्र बदनी शक्तिपीठ कहलाया है। इस मंदिर में माता की मूर्ति नहीं बल्कि यहां मंदिर के गर्भगृह में स्थापित श्रीयन्त्र की पूजा की जाती है। माना जाता है कि मंदिर का तेज अधिक होने के कारण पुजारी इस श्रीयंत्र की पूजा आंख में पट्टी बांधकर करते हैं। यहां पर देवी की मूर्ति जिसे देखना वर्जित है जो भी इस मूर्ति को देखने की चेष्टा करता है वह अंधा हो जाता है।
माता के आगमन के लिए देवी देवताओं को किया जाता है याद
इस मंदिर में पुजारी मुख्य रूप से भट्ट सेमल्टी ब्राह्मण होते है। जो इस मंदिर में स्थानीय वाद्ययंत्रों से देवी देवताओं का आवाहन करते हैं। इस मंदिर में सच्चे मन से आता है माता उसकी मुराद जरूर पूरा करती हैं। लोगों की मान्यता है कि माता रानी देव डोली में अवतरित होती हैं और अप्सराएं, गंधर्व यहां रात्रि को नृत्य करते हैं। इस मंदिर में निराहार रहकर जो भी यहां संत साधना करते हैं उन्हें कई सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
नवरात्री पर होती है भक्तों की भारी भीड़
वहीं, नवरात्री के समय चंद्रबदनी मंदिर में माता के लिए विशेष प्रकार के आयोजन किये जाते हैं। जिससे माता प्रसन्न हो। यहां नवरात्री पर भक्तो की भारी भीड़ भी देखने को मिलती हैं। जो यहां विधि विधान से पूजा करती है।
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