शनि प्रदोष व्रत कल, सबसे पहले चंद्रदेव ने ही की थी यह पूजा

शनि प्रदोष व्रत कल, सबसे पहले चंद्रदेव ने ही की थी यह पूजा

प्रदोष व्रत हर माह में त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है। शनि प्रदोष व्रत में शिव-पार्वती की पूजा साथ शनि देव की भी पूजा की जाती है। इस महीने शनि प्रदोष व्रत 18 सितंबर को रखा जाएगा। प्रदोष व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है। माना जाता है कि प्रदोष का …

प्रदोष व्रत हर माह में त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है। शनि प्रदोष व्रत में शिव-पार्वती की पूजा साथ शनि देव की भी पूजा की जाती है। इस महीने शनि प्रदोष व्रत 18 सितंबर को रखा जाएगा। प्रदोष व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है। माना जाता है कि प्रदोष का व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने ही किया था।

व्रत का लें संकल्प
प्रदोष व्रत के दिन सूरज उगने से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प करें। सुबह ही शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर ही या घर पर पूजा करें। पूजा में  बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल अर्पित करें। पूजा करते वक्त शिव के मन्त्र नमः शिवाय  का जाप करें। वहीं शाम को प्रदोष बेला में पूजा करें। भगवान शिव का जल, दूध, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक करें। फिर शिवलिंग पर शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि अर्पित करें और  घी का दीपक प्रज्वलित करें। शिव चालीसा का पाठ जरूर करें।

शुभ मुहूर्त
जो लोग भाद्रपद शुक्ल प्रदोष व्रत रखेंगे। उनको शिव जी और पार्वती माता की पूजा के दिन शाम के समय 02 घंटे 21 मिनट का समय प्राप्त होगा। इस दिन आप शाम को 06 बजकर 23 मिनट से रात 08 बजकर 44 मिनट तक प्रदोष व्रत की पूजा कर सकते हैं। यह शनि प्रदोष व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त है।

शनि प्रदोष की कथा
शनि प्रदोष के दिन भगवान शंकर और शनिदेव पूजन किया जाता है। शनि प्रदोष के संबंध में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर सेठ थे। सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दुःखी रहते थे। काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।

अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए। सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं।

साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा।दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और खुशियों से उनका जीवन भर गया। साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और शंकर भगवान की निम्न वंदना बताई।

हे रुद्रदेव शिव नमस्कार।
शिवशंकर जगगुरु नमस्कार।।
हे नीलकंठ सुर नमस्कार।
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार।।
हे उमाकांत सुधि नमस्कार।
उग्रत्व रूप मन नमस्कार।।
ईशान ईश प्रभु नमस्कार।
विश्‍वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार।।

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