महंगे तेल की चुनौती

महंगे तेल की चुनौती

कृषि प्रधान देश होने के बावजूद सरसों के तेल के दाम में जिस तरह से वृद्धि हो रही है, वह आम लोगों के लिए किसी संकट से कम नहीं हैं। स्थिति यह है कि खुदरा तेल 200 रूपये लीटर तक बिक रहा है। महंगे खाद्य तेलों ने न केवल गरीब तबके बल्कि मध्यम वर्ग के …

कृषि प्रधान देश होने के बावजूद सरसों के तेल के दाम में जिस तरह से वृद्धि हो रही है, वह आम लोगों के लिए किसी संकट से कम नहीं हैं। स्थिति यह है कि खुदरा तेल 200 रूपये लीटर तक बिक रहा है। महंगे खाद्य तेलों ने न केवल गरीब तबके बल्कि मध्यम वर्ग के रसोई बजट को बिगाड़ दिया है।

खाद्य तेलों की बढ़ती हुई कीमतें और अपर्याप्त तिलहन उत्पादन पीड़ादायक आर्थिक चुनौती बनकर उभरा है। वर्ष 1990 के आसपास देश खाद्य तेलों के मामले में लगभग आत्मनिर्भर था। फिर खाद्य तेलों के आयात पर देश की निर्भरता धीरे-धीरे बढ़ती गई। देश में खाद्य तेल जरूरतों का लगभग 55 से 60 प्रतिशत हिस्सा आयात किया जाता है। परिणामस्वरूप खाद्य तेल का अंतरराष्ट्रीय बाजार देश में खाद्य तेल के दाम को प्रभावित करता है। मौजूदा समय में स्वदेशी उत्पादन और आयातित तेलों के बीच सालाना 75 हजार करोड़ का अंतर है।

पिछले एक वर्ष में सभी तेलों की कीमतों में औसतन करीब साठ प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। हरित क्रांति के तहत जिस तरह से धान-गेहूं की फसलों पर काम हुआ, वैसा काम पीली क्रांति के तहत तिलहन के क्षेत्र में नहीं हुआ। परिणाम स्वरूप देश तिलहन पैदावार में पिछड़ता गया। नतीजा यह हुआ कि देश में आवश्यकता के अनुरूप तिलहन पैदावार नहीं बढ़ने से खाद्य तेलों के उत्पादन पर असर पड़ा। देश के कृषि क्षेत्र से जीडीपी में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और लगातार कृषि निर्यात बढ़ रहा है, परंतु तिलहन पैदावार में निराशाजनक स्थितियां बनी हुई हैं।

तिलहन के मामले में हम अपनी जरूरतों को पूरा करने लायक उत्पादन भी नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से देश में तिलहन उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। पिछले दिनों केंद्र सरकार ने देश में पाम ऑयल का उत्पादन बढ़ाने को राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-पाम ऑयल नामक योजना के अंतर्गत 11040 करोड़ मूल्य की प्रोत्साहन राशि को मंजूरी दी है ताकि इस आयातित खाद्य तेल पर निर्भरता कम हो सके।

फिर भी तिलहन उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अभी लंबा सफर तय करना बाकी है। आने वाले दिनों में सरसों तेल रसोई का बजट और न बिगाड़ दे और खाद्य तेलों की बढ़ी कीमतों से आम आदमी प्रभावित न होने पाए, इस पर फौरन मंथन करने और कदम उठाने की आवश्यकता है। खाद्य तेल में स्थाई आत्मनिर्भर बनने के सतत प्रयास जारी रखने होंगे।