अल्मोड़ा: खुमाड़ को बापू ने दिया कुमाऊं की बारादोली का नाम

बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा। देश की आजादी के लिये उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद स्थित सल्ट ब्लाक के लोंगों ने भी आजादी की लड़ाई में बड़ चढ़ कर हिस्सा लिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जहां इलाकाई हाकिम हबीबुर्रहमान ने गोरी फौज के साथ पूरे सल्ट में कहर बरपा दिया था। वहीं 1942 में इलाकाई एसडीएम जानसन …
बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा। देश की आजादी के लिये उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद स्थित सल्ट ब्लाक के लोंगों ने भी आजादी की लड़ाई में बड़ चढ़ कर हिस्सा लिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जहां इलाकाई हाकिम हबीबुर्रहमान ने गोरी फौज के साथ पूरे सल्ट में कहर बरपा दिया था। वहीं 1942 में इलाकाई एसडीएम जानसन ने खुमाड़ में क्रांतिकारियों की सभा पर गोली चला दी थी। इस गोलीकांड में चार लोग शहीद हो गए जबकि सैंकड़ों क्रांतिकारी गंभीर रूप से घायल हो गए। आजादी के लिए बलिदान की इस भावना को देखते हुए गांधी जी ने इस क्षेत्र को कुमाऊं की बारादोली का नाम दिया।
कुमाऊं गढ़वाल की सीमा से लगे सल्ट ब्लाक का इतिहास देखा जाए तो यह क्षेत्र आजादी की लडाई में शुरू से ही सक्रिय था। सल्ट सविनय अवज्ञा आंदोलन में सर्वाधिक हिस्सेदारी वाला इलाका था। जिस कारण प्रशासन ने आजादी मिलने तक इस क्षेत्र के अपना रूख बेहद सख्त रखा और दमन की सारी हदें तोड़ दी। 1929-30 में सल्ट में कांग्रेस की सदस्य संख्या 1000 तक पहुंच गई थी।
इसी के साथ गांव गांव में महात्मा गांधी के कार्यक्रमों की भी धूम मच गई। 65 में 61 मालदारों ने इस्तीफा दे दिया। तंबाकू व विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया। सभाओं और प्रार्थना के लिये रण सिंह बजाकर सूचना दी जाती थी। 17 अगस्त 1930 को सल्ट के सत्याग्रही संचालक हरगोविंद पंत को गिरफ्तार कर लिया गया। जिससे क्षेत्र के रणबांकुरे आगबबूला हो गए। आंदोलन को दबाने के लिये इलाकाई हाकिम हबीबुर्रहमान गोरी फौज के साथ सल्ट के विभिन्न इलाकों में बर्बरता पूर्ण दमन करता पहुंच गया।
और यह दमन आजादी तक चलता रहा। महात्मा गांधी के नेतृत्व में जब जब आंदोलन चले इससे यह क्षेत्र कभी भी उनसे अछूता नहीं रहा। हांलाकि इस क्षेत्र में आजादी की लडाई समांतार लड़ी गई। 1922 में महात्मा गांधी के जेल जाने पर क्षेत्र के लोंगों ने इसका जबर्दस्त प्रतिकार किया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पुरुषोत्तम उपाध्याय 1927 में सरकारी नौकरी छोडकर पूरी तरह संघर्ष में कूद गए। 1927 में नशाबंदी, तम्बाकू बंदी, आंदोलन के दौरान धर्म सिंह मालगुजार के गोदामों में रखा तंबाकू जला दिया गया।
पांच सितम्बर 1942 को जब यहां आयोजित सभा को विफल करने के उद्ïदेश्य से एसडीएम जानसन यहां पहुंचा तो आंदोलनकारियों ने उसका रास्ता रोक लिया। जानसन ने गोली चलाने का आदेश दे दिया और दो सगे भाई खीमानंद व गंगाराम ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। जबकि चूडामणि व बहादुर सिंह भी चार दिन बाद शहीद हो गए। खुमाड़ की धरती रक्तरंजित हो गई पर यहां के लोंगों के देश भक्ति के जज्बे में कोई कमी नहीं आई। पराक्रम और त्याग की इस भावना को देखते हुये गांधीजी ने खुमाड को कुमाऊं की बारदोली का नाम दिया और आजादी की लडाई में सल्ट का गौरवशाली इतिहास सदा के लिए स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया।
शहीदों की याद में बनाया गया शहीद स्मारक
अल्मोड़ा : आजादी के बाद सल्ट के शहीदों की स्मृति में सल्ट के खुमाड़ गांव की पावन धरती पर शहीद स्मारक का निर्माण किया गया। जहां हा साल पांच सितंबर को शहीद दिवस का आयोजन किया जाता है। इस कार्यक्रम में तमाम राजनीतिक दलों के अलावा क्षेत्र के लोग शिरकत करते हैं और शहीदों को श्रद्धाजंलि देकर उनके सपनों का पूरा करने का संकल्प भी लेते हैं।
आज शहीदों को श्रद्धाजंलि देने उमड़ेंगे लोग
अल्मोड़ा : शहीद दिवस के मौके पर आज विभिन्न राजनीतिक दलों के अलावा सैंकड़ों स्थानीय लोग सल्ट के शहीदों को श्रद्धाजंलि देने शहीद स्मारक पहुंचेंगे। सल्ट के विधायक महेश जीना ने बताया कि इस बार मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के अलावा कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत व रेखा आर्या को भी इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया है। जिसके लिए कार्यकर्ता तैयारियों में जुटे हैं। जबकि कांग्रेस, यूकेडी व अन्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि भी यहां शहीदों को श्रद्धाजंलि देने आएंगे।