बरेली: कृषि विभाग के मास्टर माइंड कर्मचारी मार रहे किसानों का हक

बरेली, अमृत विचार। कृषि यंत्रीकरण योजना में सेंधमारी में कृषि विभाग के मास्टर माइंड कर्मचारी भी शामिल हैं। अनुदानित यंत्रों की बुकिंग व इन पर मिलने वाले लाखों रुपये के अनुदान हड़पने में इनका अहम रोल होता है। इसका अंदाजा तीन दिन पहले अनुदानित यंत्रों की बुकिंग से लगाया जा सकता है। दोपहर में साइट …
बरेली, अमृत विचार। कृषि यंत्रीकरण योजना में सेंधमारी में कृषि विभाग के मास्टर माइंड कर्मचारी भी शामिल हैं। अनुदानित यंत्रों की बुकिंग व इन पर मिलने वाले लाखों रुपये के अनुदान हड़पने में इनका अहम रोल होता है। इसका अंदाजा तीन दिन पहले अनुदानित यंत्रों की बुकिंग से लगाया जा सकता है। दोपहर में साइट खुलने पर चंद घंटे में ही करोड़ों के अनुदानित यंत्रों की बुकिंग फुल हो गई थी। बिना इनकी संलिप्तता के ऐसा होना, संभव नहीं है।
किसानों की आय दोगुनी करने के मकसद से सरकार ने कृषि यंत्रीकरण योजना में कई महंगे कृषि उपकरणों की पहुंच बनाने के लिए उन पर मोटा अनुदान देती है। योजना में सबसे अधिक करीब अस्सी फीसदी तक अनुदान कृषि उपकरणों में दिए जाते हैं। बाजार में करीब एक लाख रुपये में मिलने वाले यंत्र अनुदान के जरिये महज बीस हजार रुपये में मिल जाता है लेकिन सीमित संख्या होने से इसके लिए काफी मारामारी रहती है।
अनुदान आधारित उपकरण हासिल करने के लिए किसानों को पहले टोकन लेना होता है। यह कृषि विभाग से ऑनलाइन मिलता है लेकिन असली खेल यहीं से शुरू होता है। सूत्रों के मुताबिक तयशुदा समय पर कर्मचारी साइट नहीं खोलते। गुपचुप तरीके से थोड़ी देर बाद यह साइट खुलती है, जिसमें मिलीभगत से बिचौलिये टोकन हासिल कर लेते हैं। इसके बाद मशीनरी उपकरण विक्रेता पहले बिक चुके उपकरण के नाम पर ही नए उपकरणों की खरीद दिखा देते हैं।
पिछले वर्ष में जिसने इनको बाजार दाम में खरीदा उसे भी कुछ रुपये दे दिए जाते हैं। इस तरह बिना नए उपकरण की खरीद होते ही लाखों रुपये के अनुदान को मिलीभगत से हड़प लिया जाता है। हर वर्ष करीब पचास लाख रुपये से अधिक अनुदान राशि के अधिकांश हिस्से की ऐसे ही बंदरबांट हो जाती है।
विभागीय कर्मियों की संलिप्तता से ठगे जा रहे किसान
सरकार की तरफ से किसानों को अनुदान पर यंत्र देने की योजना चार साल पहले शुरू हुई थी। योजना में पारदर्शिता को लेकर ऑनलाइन बुकिंग की व्यवस्था की गई, तब से ही यह दिक्कत सामने आ रही है। सूत्रों की मानें तो उप निदेशक कार्यालय में कुछ कर्मचारियों की टोकन के खेल में मिलीभगत रहती है। फर्जी तरीके से कागज तैयार करने में भी यही मदद करते हैं। इसलिए जब-जब योजना आई तो सेंधमारी में वह कामयाब रहे। दूसरी तरफ एक खासबात यह भी है कि इस अनुदान राशि से मिलने वाले उपकरणों की जांच भी नहीं कराई जाती।
कृषि उपकरणों के अनुदान में यदि किसी तरह का फर्जीवाड़ा होगा तो शिकायत मिलने पर जांच कराई जाएगी। जांच में अगर कार्यालय का कर्मचारी मिलेगा, तब उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। -डा. रामवीर कटारा, संयुक्त कृषि निदेशक