Shahenshah of Ghazal
साहित्य 

गम है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास, सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए... शहंशाह ए गजल खुमार बाराबंकवी की यौम ए पैदाइश पर विशेष

गम है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास, सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए... शहंशाह ए गजल खुमार बाराबंकवी की यौम ए पैदाइश पर विशेष योगेश शर्मा/बाराबंकी, अमृत विचार। यही खुसूसियत थी शहंशाह ए गजल खुमार बाराबंकवी की कि वह महफिल का नहीं बल्कि महफिल उनका इंतजार करती और उनके आने के बाद महफिल उन्ही की होकर रह जाती थी। एक बार और फरमाएं, सुनने...
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