Pakistani Poet
साहित्य 

मिरे हमदम, मिरे दोस्त

मिरे हमदम, मिरे दोस्त गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्त गर मुझे इस का यक़ीं हो कि तिरे दिल की थकन तिरी आँखों की उदासी तेरे सीने की जलन मेरी दिल-जूई मिरे प्यार से मिट जाएगी गर मिरा हर्फ़-ए-तसल्ली वो दवा हो जिस से जी उठे फिर तिरा उजड़ा हुआ बे-नूर दिमाग़ तेरी पेशानी से …
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साहित्य 

राज़-ए-उल्फ़त छुपा के देख लिया

राज़-ए-उल्फ़त छुपा के देख लिया राज़-ए-उल्फ़त छुपा के देख लिया दिल बहुत कुछ जला के देख लिया और क्या देखने को बाक़ी है आप से दिल लगा के देख लिया वो मिरे हो के भी मिरे न हुए उन को अपना बना के देख लिया आज उन की नज़र में कुछ हम ने सब की नज़रें बचा के देख लिया …
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साहित्य 

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन देखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया तुझ से भी …
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साहित्य 

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन देखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया तुझ से भी …
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साहित्य 

सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन, न थी तेरी अंजुमन से पहले…

सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन, न थी तेरी अंजुमन से पहले… फैज़ अहमद फ़ैज़ एक पाकिस्तानी कवि और बुद्धिजीवी थे। उनकी कविता का पाकिस्तान के सांस्कृतिक इतिहास पर काफी प्रभाव पड़ा। उन्होंने उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं में भी लिखा, जो दक्षिण एशिया के अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाती है। फैज़ अहमद फ़ैज़ की ये कविता सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन, न थी तेरी अंजुमन …
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