Haseeb soz
साहित्य 

बड़े हिसाब से इज़्ज़त बचानी पड़ती है…

बड़े हिसाब से इज़्ज़त बचानी पड़ती है… बड़े हिसाब से इज़्ज़त बचानी पड़ती है हमेशा झूठी कहानी सुनानी पड़ती है तुम एक बार जो टूटे तो जुड़ नहीं पाए हमें तो रोज़ ये ज़िल्लत उठानी पड़ती है मुझे ख़रीदने ऐसे भी लोग आते हैं कि जिन के कहने से क़ीमत घटानी पड़ती है मलाल ये है कि ये दोनों हाथ मेरे हैं …
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