नई दिल्ली: स्थापना के बाद सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है रेलवे

संजय सिंह, अमृत विचार। ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन के तीन दिवसीय वार्षिक अधिवेशन में रेलवे के निजीकरण, नए श्रम कानूनों के जरिये रेलकर्मियों की संख्या में कटौती, कोरोना काल में असाधारण कार्य प्रदर्शन एवं बड़ी संख्या में शहादत के बावजूद रेलकर्मियों की सुविधाओं में कटौती जैसी चुनौतियों पर विस्तारपूर्वक चर्चा हुई और भविष्य की रणनीति …
संजय सिंह, अमृत विचार। ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन के तीन दिवसीय वार्षिक अधिवेशन में रेलवे के निजीकरण, नए श्रम कानूनों के जरिये रेलकर्मियों की संख्या में कटौती, कोरोना काल में असाधारण कार्य प्रदर्शन एवं बड़ी संख्या में शहादत के बावजूद रेलकर्मियों की सुविधाओं में कटौती जैसी चुनौतियों पर विस्तारपूर्वक चर्चा हुई और भविष्य की रणनीति का खाका खींचा गया।
कोरोना के कारण वर्चुअल माध्यम से हुए इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए एआइआरएफ के महामंत्री शिव गोपाल मिश्रा ने कहा कि भारतीय रेल अपनी स्थापना के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है। रेल कर्मचारियों के सामने बेहद कठिन चुनौती है। सरकार हर हाल में भारतीय रेल का निजीकरण और उत्पादन इकाइयों का निगमीकरण करना चाहती है। लेकिन क्यों करना चाहती है, इसका कोई ठोस जवाब सरकार के पास नही है।
हैरानी तब होती है जब देखता हूं कि जिन कार्यों के लिए रेलकर्मी हैं और वे बेहतर तरीके से अपना काम कर रहे हैं, उन कार्यों को भी ऑउटसोर्स किया जा रहा है। एक साजिश के तहत अच्छे आमदनी वाले रूटों पर ड़ेढ सौ से ज्यादा ट्रेनों का ऑपरेशन प्राइवेट ऑपरेटरों को देने की कोशिश की जा रही है।
सवाल ये है कि जब मुश्किल दौर में भी जान की बाजी लगाकर रेलकर्मी अच्छी तरह ट्रेनों का संचालन कर रहे है तो फिर निजी ऑपरेटर किसका खजाना भरने के लिए आ रहे हैं ? कोरोना के दौरान 3500 से ज्यादा रेलकर्मी शहीद हो गए, लेकिन ट्रेनों का संचालन जारी रहा।
जब राज्य सरकारों ने प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुचाने में हाथ खड़े कर दिए तो ये काम रेलकर्मियों ने किया और श्रमिक स्पेशल ट्रेनो के जरिए 63 लाख श्रमिकों को उनके घर पहुचाया। इसी तरह जब दूसरी लहर में देश भर में आक्सीजन की कमी हुई तो फिर ये जिम्मेदारी रेलकर्मियों पर आई और उन्होंने इसे बख़ूबी निभाया। इसके बाद भी रेलकर्मियों के प्रति सरकार का रवैया नकारात्मक ही है।
महामंत्री ने कहाकि जो हालात हैं वो बेहतर नही है। अप्रेंटिस एक्ट, पुरानी पेशन की बहाली, लार्सजेस का मसला, ग्रेड पे 1800 और 4600 तथा रिक्त पदों को भरने सहित कई मुद्दों पर लगातार बात हो रही है। लेकिन नतीजा सामने नही आ रहा है।
इससे पहले अधिवेशन का उदघाटन करते हुए एआइआरएफ के अध्यक्ष कॉमरेड एन कन्हैया ने सरकार पर कोरोना काल का फायदा उठाते हुए रेलकर्मियों की सुविधाओं पर कैंची चलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा नए श्रम कानूनों के जरिये फेडरेशन व यूनियन को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। लेकिन सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों को एआइआरएफ कभी कामयाब नहीं होने देगी।
अधिवेशन के दौरान रेलवे में महिला कर्मचारियों की कम संख्या पर चिंता प्रकट की गई। राष्ट्रीय महिला प्रकोष्ठ की सेमिनार में मुख्य अतिथि डा. रंजना कुमारी ने कहा की रेलवे में सिर्फ 7 फीसदी महिला कर्मचारी हैं। इसे कैसे बढ़ाया जाए इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
28-30 जुलाई के बीच सम्पन्न अधिवेशन में राष्ट्रीय परिदृश्य, रेलकर्मियों की समस्याएं, श्रम कानून, कोविड में रेलकर्मियों की शहादत, रेल बचाओ, देश बचाओ, निजीकरण, निगमीकरण, डिफेंस कर्मचारियों की हड़ताल पर रोक अध्यादेश की वापसी की मांग जैसे कुल आठ प्रस्ताव पारित हुए।
वर्चुअल सम्मेलन को रेलमंत्री अश्वनी वैष्णव ने भी संबोधित किया। उन्होंने आशा प्रकट की पहले की तरह आगे भी लगातार संवादों के माध्यम से रेल प्रशासन रेलकर्मियों की समस्याओं का समाधान करने में सफल होगा। रेलवे बोर्ड अध्यक्ष सुनीत शर्मा और उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक आशुतोष गंगल ने भी अपने विचार रखे।
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