असम-मिजोरम सीमा विवाद भड़कने के पीछे अवैध बांग्लादेशी

संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद भड़कने के पीछे असम में बांग्लादेशियों की घुसपैठ को बड़ी वजह बताया जा रहा है। असम और मिजोरम का सीमा विवाद नया नहीं है। ये अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है जब मिजोरम असम का हिस्सा हुआ करता था। तब …
संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद भड़कने के पीछे असम में बांग्लादेशियों की घुसपैठ को बड़ी वजह बताया जा रहा है। असम और मिजोरम का सीमा विवाद नया नहीं है। ये अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है जब मिजोरम असम का हिस्सा हुआ करता था। तब इसे ‘लुसाई हिल्स’ के नाम से जाना जाता था।
आजादी के बाद भी लंबे समय तक यही स्थिति रही। लेकिन 1972 में केंद्र सरकार ने लुसाई हिल्स को मिजोरम नाम देकर उसे केंद्रशासित प्रदेश घोषित कर दिया। बाद में 1987 में मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया। असम के साथ मिजोरम के बीच 165 किलोमीटर की सीमारेखा है लेकिन सीमा विवाद मुख्यतः कछार-कोलासिब, करीमगंज-ममिट तथा हैलाकांडी-कोलासिब जिलों की सीमारेखाओं पर है। असम के अलावा त्रिपुरा से भी मिजोरम का सीमा विवाद है।
दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद की जड़ 1875 तथा 1933 की दो अधिसूचनाओं को माना जाता है। जहां 1875 की अधिसूचना लुसाई हिल्स को कछार के मैदानी इलाकों से अलग करती है। वहीं, 1933 की अधिसूचना के मार्फ़त लुसाई पहाड़ियों और मणिपुर के बीच सीमा रेखा का निर्धारण किया गया है। असम के लोग मिजोरम के साथ सीमा रेखा का निर्धारण 1933 की अधिसूचना के आधार पर करते हैं। जबकि मिजोरम के नेता इसे नहीं मानते।
मिजो नेताओं का कहना है कि 1933 की अधिसूचना उनसे विचार-विमर्श के बगैर जारी की गई थी। इसलिए असम के साथ मिजोरम की सीमारेखा का निर्धारण 1875 की अधिसूचना के अनुसार होना चाहिए जिसे 1873 के बेंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन एक्ट के अंतर्गत जारी किया गया था।
इन्हीं पृथक मान्यताओं के चलते दोनों राज्यों के सीमावर्ती इलाकों में नागरिकों व पुलिस के बीच गाहे-बगाहे झड़पें होती रहती हैं। इन झड़पों के मद्देनजर कुछ वर्ष पहले दोनों राज्यों की सरकारों ने सीमा पर स्थित ‘नो मेंस लैड’ में यथास्थिति बरकरार रखने का समझौता किया था।
परंतु पिछले दिनों असम के लैलापुर गांव के लोगों ने जमीन के इस हिस्से में कुछ अस्थायी झोपड़ियां बना लीं जिनका मिजोरम की तरफ के लोगों ने विरोध किया और झोपड़ियों में आग लगा दी। इससे विवाद भड़क गया और परिणामस्वरूप सोमवार को दोनों तरफ से हुई बम व गोलीबारी की घटनाओं में असम पुलिस के 6 जवानो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, जबकि 80 से ज्यादा लोग घायल हो गए।
मिजोरम के लोगों का कहना है कि झोपड़ियों वाली जमीन पर वे लोग लंबे अरसे से खेती करते आ रहे हैं। इसलिए इस पर उनका अधिकार है। जबकि असम के अधिकारियों का इस विषय में कहना है कि ये सही है कि मिजो लोग वहां खेती करते आए हैं। लेकिन सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक उक्त जमीन असम की है।
सरकारी रिकॉर्ड अपनी जगह हैं। लेकिन जब दोनों राज्य सरकारें यथास्थिति बनाए रखने का समझौता कर चुकी हैं तब फिर आखिर ऐसे हालात क्यों पैदा हुए? इस विषय में पूछे जाने पर असम के नागरिक संगठन इसका दोष बांग्लादेशी घुसपैठियों पर मढ़ते हैं। उनका कहना है कि असम की तरफ अवैध रूप से बस गए बांग्लादेशी ही सारी समस्या पैदा कर रहे हैं। वे अक्सर आकर मिजोरमवासियों की झोपड़ियां नष्ट कर देते हैं और पेड़-पौधे काट डालते हैं। और तो और मिजोरम पुलिस के आने पर वे उसके ऊपर पत्थरबाजी से भी नहीं चूकते हैं।
बांग्लादेशी घुसपैठियों की ये हरकतें तबसे बढ़ी हैं जबसे असम में भाजपा भाजपा सत्ता में आई है। असम से बाहर निकालने की भाजपा की मुहिम के भय से बांग्लादेशियों ने मिजोरम की सीमा में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी है। मिजोरम पर 1972 से ही लगातार मिजो नेशनल फ्रंट और कांग्रेस की मिलीजुली सरकारों का शासन रहा है। इसलिए बांग्लादेशियों को लगता है कि असम के बजाय मिजोरम में ठिकाना बनाना उनके लिए ज्यादा सुरक्षित रहेगा।
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