बरेली: इतना बिखराओ संभाला नहीं जाता मुझसे खुद को यूट्यूब पर डाला नहीं जाता मुझसे- वसीम बरेलवी
विकास यादव/अमृत विचार, बरेली। साहित्य बनाम सोशल मीडिया की बात की जाए तो दोनों में कोई समानता नहीं है। साहित्य लोगों को जीने की प्रेरणा देता था। लेकिन सोशल मीडिया ने सारा परिदृश्य ही बदल दिया है। जिस तरह साहित्य लोगों को जोड़ने का काम करता था। सोशल मीडिया घरों को तोड़ने का काम कर …
विकास यादव/अमृत विचार, बरेली। साहित्य बनाम सोशल मीडिया की बात की जाए तो दोनों में कोई समानता नहीं है। साहित्य लोगों को जीने की प्रेरणा देता था। लेकिन सोशल मीडिया ने सारा परिदृश्य ही बदल दिया है। जिस तरह साहित्य लोगों को जोड़ने का काम करता था। सोशल मीडिया घरों को तोड़ने का काम कर रहा है। इस को लेकर बरेली शहर की पहचान साहित्यकार व मशहूर शायर वसीम बरेलवी ने बताया टेलीफोन के जरिए हमारे समाज में सोशल मीडिया दाखिल हुआ। साइंटिफिक एप्रोजिस दाखिल हुई हैं उनमें इनती तेजी से तब्दीली किसी समाज माशय (प्रचलन) में नहीं आती।
इस तरह की चीजों से आई है, जिनको हम सोच नहीं सकते वह काम घर बैठे हो जाते हैं। इसके फायदे के साथ-साथ नुकसान भी बहुत हैं। भारतीय संस्कृति की जो सभ्यता, रीति रिवाज हैं वह सदियों पुराने हैं। हम इतनी आसानी से उनको बदलने के लिए तैयार नहीं हैं। सोशल मीडिया ने इस समय हमारे मुआशरे को हिला कर रख दिया है। जिसके ऊपर कभी हम नाज किया करते थे। घरों के अंदर जो टूट-फूट हो रही है। फासले बढ़ रहे हैं। हमारी आम जिंदगी को इसने बदल दिया है। लेकिन इस तनाव की स्थिति से हमारे तहजीबी रवैए काबू पा लेगें। अब लोग अपने बच्चों को इसमें इनवॉल्व होने पर उसे गलत बता रहें हैं। हिंदुस्तान की तहजीबी जड़ें इतनी दूर तक फैली हुई हैं। सोशल मीडिया के जरिए वक्ती खराबी फैली है, उस पर काबू पा लेगें।
किताबों से नई नस्ल दूर हो जाएगी तो हमारे पास बचेगा क्या
अगर किताबों से हमारे नई नस्ल दूर हो जाएगी तो हमारे पास कुछ नहीं बचेगा। सोशल मीडिया से मिलने वाली कच्ची पक्की जानकारी हमें मिलती है। बगैर किताबों के हमारा कोई वजूद नहीं है। किताबें हमारे पास सफर करती है। यह चीजें हमें रास्ता नहीं दिखाती है। किताबों से हमें वास्ता रखना पड़ेगा। जितनी जल्दी हम इस हकीकत को समझ जाएंगे। उतनी जल्दी सोशल मीडिया के जादू से बाहर निकल सकेगें।
समय के साथ बदलता रहा साहित्य
हमारे पास पूरा हिन्दी साहित्य, उर्दू साहित्य का इतिहास है। साहित्य समय के हिसाब से बदलता रहा है। पहले राजा महाराजा के हिसाब से साहित्य था। आजादी के समय लोगों को जंगे आजादी में शामिल करने वाला साहित्य था। आजादी के बाद नए चेलेंजेंस आने लगे। चारों तरफ फैली जिंदगी समाज के पहलुओं को लेकर शायरी व साहित्य ने अपना रूप बदला है।
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