प्रयागराज : केंद्रीय जांच एजेंसियों को जांच सौंपने के नियमों को किया स्पष्ट

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोनभद्र जिले के चोपन क्षेत्र के पूर्व अध्यक्ष की हत्या की जांच सीबीआई/एनआईए को सौंपने के मामले पर सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया कि किसी आपराधिक मामले की जांच राज्य पुलिस से केंद्रीय एजेंसियों जैसे सीबीआई या एनआईए को किन परिस्थितियों में सौंपी जा सकती है।
कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि संवैधानिक न्यायालयों के पास जांच को दोबारा शुरू करने, नई जांच या ताजा जांच का आदेश देने का अधिकार है और अगर ट्रायल प्रारंभ हो गया हो और कुछ गवाहों की गवाही हो चुकी हो, तब भी न्याय हित में न्यायालय अपने उक्त अधिकार का प्रयोग कर सकता है, लेकिन इस शक्ति का प्रयोग बहुत संयम और केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए। जब मौजूदा जांच पक्षपातपूर्ण या झूठी प्रतीत हो या उच्च स्तरीय राज्य अधिकारी जांच के दायरे में हो या जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा या आतंकवाद से जुड़ा हो।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सीबीआई/एनआईए को जांच स्थानांतरित करना एक असाधारण उपाय है, जिसे ट्रायल प्रारंभ हो जाने के बाद सामान्यतः नहीं अपनाया जा सकता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने चोपन, सोनभद्र के पूर्व अध्यक्ष इम्तियाज अहमद के भाई उस्मान अली की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। याची ने अपने भाई की हत्या के मामले की जांच सीबी-सीआईडी से हटाकर सीबीआई/एनआईए को सौंपने की मांग की थी। याची ने 26 जून 2019 के शासनादेश को चुनौती देते हुए याचिका में बताया कि आरोपियों के राजनीतिक प्रभाव के कारण जांच निष्पक्ष नहीं हो पा रही है। अतः स्वतंत्र केंद्रीय एजेंसियों द्वारा हत्या की जांच आवश्यक है।
याचिका में यह भी बताया गया कि प्रतिबंधित संगठन झारखंड जन मुक्ति परिषद के उग्रवादी हत्या में शामिल थे, साथ ही कुछ आरोपियों को आरोप पत्र में मनमाने ढंग से निर्दोष सिद्ध कर दिया गया। हालांकि मामले पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि याची सीबी-सीआईडी की जांच पक्षपातपूर्ण और दोषयुक्त सिद्ध करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका। अतः याचिका खारिज कर दी गई।
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