हृदय में प्रकाशित होने वाली ज्योति ही राम हैं, राम के जीवन से प्राप्त मुख्य शिक्षा-अनुशासन

हृदय में प्रकाशित होने वाली ज्योति ही राम हैं, राम के जीवन से प्राप्त मुख्य शिक्षा-अनुशासन

कानपुर, अमृत विचार। भगवान राम ने एक अच्छे पुत्र, शिष्य और राजा के गुणों का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया, जिससे वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। राम सहज हैं, सरल हैं लेकिन दृढ़निश्चयी हैं। अपने मित्रों के ही हितैषी नहीं हैं, बल्कि अपनी शरण में आए शत्रुओं को भी अभय देने वाले हैं। राम एक पुत्र, एक भाई, एक पति, एक मित्र और एक राजा, सभी रूपों में अनुकरणीय हैं। वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। दरअसल राम हमारे भीतर प्रकाशित होती ज्योति के प्रतीक हैं।

संस्थापक अध्यक्ष ज्योतिष सेवा संस्थान के आचार्य पवन तिवारी ने बताया कि राम माने आत्म-ज्योति। जो हमारे हृदय में प्रकाशित है, वही राम हैं। राम हमेशा हमारे हृदय में जगमगा रहे हैं। श्रीराम का जन्म माता कौशल्या और पिता राजा दशरथ के यहां हुआ था। संस्कृत में ‘दशरथ’ का अर्थ होता है— ‘दस रथों वाला।’ यहां दस रथ हमारी पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्मेंद्रियों के प्रतीक हैं। ‘कौशल्या’ का अर्थ है— ‘वह जो कुशल है।’ राम का जन्म वहीं हो सकता है, जहां पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्मेंद्रियों के संतुलित संचालन की कुशलता हो। राम का जन्म अयोध्या में हुआ था, जिसका शाब्दिक अर्थ है—‘वह स्थान जहां कोई युद्ध नहीं हो सकता।’ जब मन किसी भी द्वंद्व की अवस्था से मुक्त हो, तभी हमारे भीतर ज्ञान रूपी प्रकाश का उदय होता है।

राम हमारी आत्मा के प्रतीक हैं। लक्ष्मण सजगता के प्रतीक हैं। सीताजी मन का प्रतीक हैं। रावण अहंकार तथा नकारात्मकता का प्रतीक है। जैसे पानी का स्वभाव है बहना, मन का स्वभाव है डगमगाना, तो मन रूपी सीताजी सोने के मृग के प्रति मोहित हो गईं। हमारा मन वस्तुओं में मोहित होकर उनकी ओर आकर्षित हो जाता है। अहंकार रूपी रावण मन रूपी सीताजी का हरण कर लेता है। इस प्रकार मन रूपी सीताजी, आत्मारूपी राम से दूर हो जाती हैं। हनुमानजी को ‘पवन’ पुत्र कहा जाता है। वे सीताजी को वापस लाने में राम की सहायता करते हैं।

तो श्वास और सजगता (हनुमान और लक्ष्मण) की सहायता से, मन (सीता) का आत्मा (राम) के साथ पुनर्मिलन होता है। इस तरह पूरी रामायण हमारे भीतर नित्य घटित हो रही है।

राम के जीवन से प्राप्त मुख्य शिक्षा है- अनुशासन

अनुशासन अत्यंत आवश्यक है। इसके बिना कोई भी कार्य नहीं हो सकता। दूसरी ओर, रचनात्मकता को भी कुछ स्थान चाहिए। इसे स्वतंत्रता की आवश्यकता है। उत्पादकता अनुशासन पर निर्भर करती है। स्वतंत्रता के बिना रचनात्मकता दबी रह जाती है। जीवन रचनात्मकता और उत्पादकता के बीच का संतुलन है। आप शानदार विचार रख सकते हैं, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए आपको अनुशासन की आवश्यकता है।

एक राजा के रूप में भगवान राम के राज्य में ऐसे गुण थे, जो राज्य को विशेष बनाते थे। नरेंद्र मोदी ने भी ‘रामराज्य’ के समान एक आदर्श समाज की परिकल्पना की है, जहां प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं को पूरा किया जाए। रामराज्य एक अपराध मुक्त समाज का निर्माण करता है।

राजाओं की भूमिका में कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले गुरु से मार्गदर्शन लेने की परंपरा सम्मिलित थी। यदि राम भरत के साथ लौट आते तो रामायण कभी नहीं बनती। यदि रामजी ने स्वर्ण-मृग का पीछा नहीं किया होता, तो यह एक अलग कहानी होती। तब तो हनुमानजी की कभी कोई भूमिका ही नहीं रहती। यदि हनुमान नहीं तो रामायण नहीं।

पीछे मुड़कर देखने पर लगता है कि ये घटनाएं चुनौतीपूर्ण अवश्य प्रतीत होती हैं, लेकिन शायद उस युग के लोगों के लिए आदर्श के रूप में, एक महान उद्देश्य को पूरा करती हैं। इसीलिए भगवान राम के निर्णयों की जटिलताओं ने इस महाकाव्य को और अधिक समृद्ध बना दिया। भगवान राम ने एक अच्छे पुत्र, शिष्य और राजा के गुणों का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया, जिससे वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। आज भी उनका नाम उन कार्यों के लिए ‘रामबाण’ जैसे शब्दों में लिया जाता है, जिनमें असफलता की कोई गुंजाइश नहीं होती।

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