दिहुली नरसंहार : 24 दलितों का क्यों बहाया था खून-किस बात को लेकर हुआ था ये कत्लेआम-जानिए

दिहुली नरसंहार : 24 दलितों का क्यों बहाया था खून-किस बात को लेकर हुआ था ये कत्लेआम-जानिए

जानिए क्यों हुआ था दिहुली नरसंहार और डकैतों ने दलित बस्ती में घुसकर किस तरह सड़कों पर बहाया था बूढ़े-बच्चे और महिलाओं का खून 

Amrit Vichar, Firozabad : उत्तर प्रदेश के फिरोजादाबाद का दिहुली गांव,  24 दलितों के खून से लाल हो गया था। दलित बस्ती में लाशें बिखरी पड़ी थीं। बदमाशों ने बूढ़े-बच्चे और महिलाएं-किसी को भी नहीं बख्शा। बल्कि जो मिला-उसे गोलियों से छलनी करते गए। 18 नवंबर 1981 के इस नरसंहार ने यूपी-केंद्र दोनों सरकारों को हिला डाला था। आज-मंगलवार को 44 साल बाद दिहुली नरसंहार के उन जिंदा बचे तीन बदमाशों को अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है। इसमें मुख्य आरोपी कप्ताना सिंह, रामसेवक और रामपाल शामिल है। अदालत के फैसले के साथ उस खौफनाक मंजर की यादें और जख्म एक बार फिर ताजा हो गए। 

चमकदार चूड़ियों के लिए मशहूर फिरोजाबाद के जसराना थाना क्षेत्र का एक गांव है दिहुली। पिछले 44 साल में यहां बहुत कुछ बदल गया। लेकिन दिहुली नरसंहार पीड़ितों के जख्म नहीं भरे। पीड़ितों ने इंसाफ की लड़ाई जारी रखी। उधर, वक्त और हालात ने उन बदमाशों को भी झुका दिया, जिन्होंने दलितों के खून को दिहुली में पानी की तरह बहाकर जश्न मनाया था।  


क्यों हुआ था ये नरसंहार 
दिहुली नरसंहार क्यों हुआ था? लायक सिंह ने कोर्ट में बताया था कि दिहुली नरसंहार से कोई डेढ़ साल पहले एक घटना घटी थी। राधे और संतोष इलाके के बदमाश और डकैत थे। दोनों के गिरोह हुआ करते थे। एक दिन पुलिस ने इन दोनों को दिहुली में घेरा था। जहां एनकाउंटर में पुलिस ने गिरोह के दो बदमाशों को पकड़ लिया। इस दौरान गांव के कुछ लोग मौजूद थे-जिसमें बाला सहाय, मिटवू लाल, महाराज आदि शामिल हैं। पुलिस ने ग्रामीणों को एनकाउंटर की घटना में गवाह बना लिया। इसी बात को लेकर राधे और संतोष दलितों से दुश्मनी मान गए और उनके सबक सिखाने की ठान ली। 


नरसंहार में 17 आरोपी थे नामजद 
दिहुली नरसंहार में 17 आरोपी नामजद किए गए थे। डकैत संतोष और राधे-इन दोनों के गिरोह के करीब 13 आरोपियों की मुकदमें के दौरान ही मौत हो गई। चार कातिल अभी जीवति हैं। इसमें तीन को पुलिस ने फांसी की सजा देते हुए जेल भेज दिया है। एक आरोपी ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना अभी तक फरार है। उसकी गिरफ्ताी के वारंट जारी हो गए हैं। कप्तान सिंह मंगलवार को अदालत में हाजिर हुआ, जबकि मैनपुरी पुलिस रामसेवक को लेकर कोर्ट पहुंची। ढलती उम्र के बीच फांसी की सजा ने उन्हें चेहरे खौफ से स्याह कर दिए। 


बस्ती में खून बहाकर मनाया था जश्न 
दिहुली नरसंहार में जिन 24 लोगों की हत्या की थी। उसमें ज्वाला प्रसाद, रामप्रसाद, राजेंद्री, राजेश, रामसेवक, शिवदयाल, मुनेश, भरत सिंह, दाताराम, आशा देवी, लालाराम, गीतम, लीलाधर, रामदुलारी, श्रृंगारवती, शांति, मानिकचंद्र, भूरे, शीला, मुकेश, प्रीतम सिंह, धनदेवी, गंगा सिंह, गजाधर शामिल थे. वेदराम ने अदालत में गवाही दी थी कि हत्याकांड में उनके दो बेटे भी मारे गए। नरसंहार के बाद हत्यारों ने दूसरे मुहल्ले में जाकर पार्टी की थी। जश्न मनाया था। रात के करीब डेढ़ बजे तक, उनके मुहल्ले में रुककर पार्टी मनाने का दावा किया था। 

बस्ती में जमकर की थी लूटपाट 
-बताते हैं कि नरंसहार के बाद पूरी बस्ती में लाशें बिखरी पड़ी थीं। कोई सड़क पर मृत पड़ा था तो किसी ने भागने की कोशिश की और छप्पर पर उसकी लाश टंगी थी। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक को बेरहमी से मौत के घाट उतारने वाले कातिलों को 44 साल बाद मौत की सजा सुनाई गई है।

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