कानपुर में मोहब्बत की मिसाल थी हसरत मोहानी की होली; मक्का से लौटकर मथुरा में श्रीकृष्ण के दर्शन करने जाते, कई भजन भी लिखे थे

कानपुर, (शैलेश अवस्थी)। होली और जुमा एक दिन पड़ने पर रंग को लेकर चल रहे नसीहत और हिदायत के दौर के बीच महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, शायर, पत्रकार मौलाना हसरत मोहानी याद आते हैं, जो होली पर पूरे मोहल्ले में घूमते थे। किसी ने रंग डाल दिया तो उसे गले लगाते और शुभकामनाएं देते थे।
अगर रंग से परहेज है, तो घर से न निकलें जैसे बयानों के बाद सबके अपने तर्क हैं, लेकिन ऐसे में हर किसी को मौलाना हसरत मोहानी से सीख लेनी चाहिए, जो एकता की अद्भुत मिसाल थे। उनके जीवन का बड़ा हिस्सा कानपुर के चमनगंज में बीता।
पुस्तकों और लेखों के मुताबिक एक बार होली के दो दिन बाद भी मौलाना को रंगे कपड़ों में देखकर उनसे किसी ने पूछा कि अब क्यों इन कपड़ों में, क्यों नहीं बदलते कपड़े? इस पर मौलाना ने जवाब दिया भाभी (कांग्रेस नेता मुरारी लाल रोहतगी की पत्नी) ने रंग डाल दिया था। खुशी में इन्हीं कपड़ों में घूम रहे हैं। रंगे कपड़ों में ही नमाज भी पढ़ रहे हैं।
हसरत मोहानी श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। वह कहते थे मेरा हज तभी मुकम्मल होता है, जब मथुरा में श्रीकृष्ण के दर्शन कर लेता हूं। होली और कृष्ण पर उन्होंने खूब लिखा। वह लिखते हैं, ‘मोपे रंग न डार मुरारी, विनती करत हूं तिहारी, पनिया भरन के जाए न देहे, श्याम भरे पिचकारी, थर -थर कांपन लाजन हसरत देखत हैं नर -नारी...’ हसरत ने लिखा मो से छेर करत नंदलाल, अबीर-गुलाल ढीठ भई जिनकी, बरजोरी औरन पर रंग डार -डार...’ वह होली पर घर से निकलते, सबको गले लगाते और एकता का संदेश देते थे। ऐसे में महान मौलाना से सीखने और मिलजुल कर होली मनाने की जरूरत है।
मुस्कुरा कर गले मिलिए और संदेश दीजिए कि हम गणेश शंकर विधार्थी और हसरत मौलाना के शहर के लोग सद्भाव पर यकीन करते हैं। अभी भी शहर में तमाम स्थानों पर हर समुदाय के लोग मिलजुल कर होली मानते हैं।
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