Bareilly: घर-घर तिरंगा के नाम पर झंडे बनवाए...भुगतान के लिए नियमों में फंसाया

अनुपम सिंह, बरेली। स्वतंत्रता दिवस पर स्वयं सहायता समूहों से आनन-फानन में बनवाए गए करीब ढाई लाख तिरंगे झंडों का भुगतान आठ माह बाद भी नहीं हो सका है। शासन से अनुमति लिए बगैर ऑर्डर देकर आननफानन अफसरों ने झंडे तो बनवा लिए मगर जब भुगतान करने का समय आया तो नियमों ने फंसा दिया। अब महिलाएं भुगतान के लिए चक्कर काट रही हैं और अफसर उन्हें आज-कल के बहानों से टाल रहे हैं। कुल मिलाकर करीब 50 लाख का भुगतान फंसा हुआ बताया जा रहा है।
पिछले साल 15 अगस्त पर राष्ट्रीय आजीविका मिशन (एनआरएलएम) को शासन से नाै लाख तिरंगे झंडे बनवाने का लक्ष्य मिला था। सात अगस्त को लक्ष्य दिया गया और 15 अगस्त से पहले आपूर्ति करनी थी। ऐसे में समय कम होने की वजह से शतप्रतिशत झंडे नहीं बन सके थे। डीसी एनआरएलएम और ब्लॉक स्तरीय अधिकारियाें ने आनन-फानन में तिरंगे बनवाने के लिए स्वयं सहायता समूहों की मदद ली। समूह सखियों को इसकी जिम्मेदारी दी गई। काफी प्रयास के बाद करीब ढाई लाख झंडे बनाकर स्वयं सहायता समूहों ने दिए थे, मगर तिरंगों की आपूर्ति किए हुए आठ माह होने वाले हैं, मगर अभी तक भुगतान नहीं हो सका है।
अफसरों के मुताबिक पैसा सीएलएफ के खाते में फंसा हुआ है, लेकिन उसका सीधा भुगतान करना मुमकिन नहीं है। भुगतान का मामला नियमों में फंस गया है, जिसकी वजह से विलंब हो रहा है, इससे विभागीय अधिकारी तो परेशान हैं ही, सबसे ज्यादा मुश्किल में समूह की वे महिलाएं हैं, जिन्होंने तिरंगे बनाकर दिए थे। 20 रुपये प्रति तिरंगे की दर से भुगतान का करीब 50 लाख रुपये फंसा हुआ है। अभी भुगतान की उम्मीद भी नजर नहीं आ रही है क्योंकि समाधान का कोई रास्ता नहीं निकल सका है।
केस-1
बिथरी चैनपुर ब्लॉक के मोहनपुर गांव की भावना कुमारी के समूह ने करीब चार हजार झंडे बनाकर दिए थे, अब भुगतान का इंतजार कर रही हैं। बताती हैं, भुगतान के लिए आठ माह से दौड़ लगा रही हैं। अधिकारी बस आश्वासन ही दे रहे हैं। गरीब महिलाएं परेशान हैं। उनकी होली भी फीकी हो गई है।
केस-2
कहा जाएं और किससे कहें अपनी बात
भोजीपुरा ब्लॉक क्षेत्र की सावित्री ने अफसरों के निर्देश पर 12 हजार झंडे बनाकर दिए थे। उम्मीद थी कि समय से पैसे मिल जाएंगे, लेकिन इतना लंबा समय बीत गया, अभी तक भुगतान नहीं हुआ है। हाल फिलहाल भुगतान की उम्मीद भी नहीं लग रही है। बोलीं, हम लोग कहां जाएं और किससे अपनी बात कहें।
केस-3
बिथरी चैनपुर ब्लाॅक क्षेत्र की धौरेला निवासी ऊषा देवी को भी अफसरों की ओर से 10 हजार झंडों का आर्डर मिला था। ऊषा देवी का कहना है कि इस काम में उन्होंने कई और लोगों की मदद ली, तब जाकर कम समय में झंडे बना पाई थीं। क्यारा ब्लाॅक की भी एक महिला का 10 हजार झंडों का भुगतान फंसा है।
समूह से तो किसी ने उधार लेकर बनाए थे तिरंगे, बढ़ रहा ब्याज
अधिकारियों की ओर से आनन-फानन में लक्ष्य निर्धारित कर झंडे बनाने का आर्डर दे दिया गया। महिलाओं ने इसके लिए सामान की खरीदारी की। किसी ने समूह के खाते से पैसे लिए तो किसी ने उधार लिया। कुछ ने अपने पास लगा दिए कि, भुगतान हो जाएगा, मगर अब तक भुगतान न होने से महिलाएं परेशान हैं। वे कह रहीं हैं समय से पैसा नहीं लौटाने पर ब्याज बढ़ रहा है। उधार लिया था तो देने वाले दबाव बना रहे हैं। हम लोगों के पास पैसे नहीं हैं। कैसे चुकता करूं।
कहा था, पांच दिन में कर देंगे भुगतान, आठ महीने निकल गए
समूह की महिलाओं के अनुसार, झंडे बनाकर देने के पांच दिन में यानी की 20 अगस्त तक भुगतान करने का आश्वासन दिया गया था,मगर आठ माह हो चुके हैं, अभी तक भुगतान न होने से उम्मीद धुंधली होती जा रही हैं। समूह की सखियों से महिलाएं दबाव बना रहीं हैं, जिन्होंने तिरंगे बनाकर दिए थे। उनका कहना है कि पैसे मिल जाएं तो उनका भी होली का पर्व अच्छे से मन जाए।
उपायुक्त स्वत: रोजगार योगेंद्र लाल भारती ने बताया कि स्वयं सहायता समूह की महिलाओं का करीब 50 लाख का भुगतान रुका है। मुख्य कोषाधिकारी ने आपत्ति लगा दी है। मिशन से अनुमति लेने की बात कही है। कोशिश है भुगतान कराने की। पैसा भी सीएलएफ के खाते में पड़ा है। जेम पोर्टल को लेकर पेच फंस गया है। जिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी से भी मिशन को पत्राचार कराया गया है।
सीडीओ जगप्रवेश के मुताबिक भुगतान की फाइल मुख्य कोषाधिकारी को गई थी। उन्होंने तकनीकी कारणों से शासन से अनुमति लेना अनिवार्य बताया है। उनकी रिपोर्ट के आधार पर ही शासन को डेढ़ माह पहले अनुमति के लिए पत्र लिखा था। 15 दिन पहले फिर रिमाइंडर भेजा है। उम्मीद है कि जल्द ही अनुमति मिल जाएगी।