Bareilly: अदालत को SSP से क्यों कहना पड़ा? 'लकीर की फकीर न बने पुलिस'

अदालत के 12 साल चक्कर काटता रहा गुलाबनगर का परिवार, अब करार दिया दोषमुक्त

Bareilly: अदालत को SSP से क्यों कहना पड़ा? 'लकीर की फकीर न बने पुलिस'

बरेली, अमृत विचार : ससुराल में आग लगाकर खुदकुशी करने वाली युवती ने अपने मृत्युपूर्व बयान में यह बात स्वीकार की, लेकिन पुलिस ने फिर भी दहेज हत्या के आरोप में चार्जशीट लगा दी। उसकी वजह से गुलाबनगर के परिवार को 12 साल अदालत के चक्कर काटने पड़े। सोमवार को अपर सत्र न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने आरोपी सास मनोरमा, देवर अमित शर्मा और ननद अंजुम उर्फ अंशु को दोषमुक्त करार देने के साथ गलत विवेचना किए जाने पर एसएसपी को भी पत्र भेजा है।

सरकारी वकील सुनील कुमार पांडेय के मुताबिक बदायूं के मोहल्ला गढ़ैया शहबाजपुर निवासी वेदप्रकाश शर्मा ने 23 मई 2012 को थाना किला में 35 वर्षीय बेटी प्रतिमा की दहेज हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। वेदप्रकाश के मुताबिक प्रतिमा की शादी उन्होंने 5 फरवरी 2007 को आलोक शर्मा से की थी। हैसियत के अनुसार दान-दहेज देने के बाद भी आलोक और ससुराल वालों कार न देने और नगदी कम मिलने की बात कहकर प्रतिमा को शादी के समय से ही प्रताड़ित और अपमानित करने लगे थे।

आरोप था कि ससुराल वालों ने प्रतिमा को 1 सितंबर 2011 को घर से निकाल दिया तो उन्होंने रिपोर्ट दर्ज करा दी। इस पर उन्होंने साजिश के तहत कोर्ट में समझौता कर लिया और प्रतिमा फिर ससुराल चली गई। ससुराल में 12 मई 2012 की रात उसके साथ मारपीट कर उसे आग लगा दी। बुरी तरह जली प्रतिमा की सफदरगंज अस्पताल दिल्ली में 20 मई 2012 को मौत हो गई। पुलिस ने पति, सास-ससुर, देवर और ननद समेत पांच के विरुद्ध आरोप पत्र कोर्ट भेजा था। शासकीय अधिवक्ता ने सात गवाह पेश किए। विचारण के दौरान आलोक और ससुर अशोक शर्मा की मृत्यु हो गई।

ये था प्रतिमा का मृत्युपूर्व बयान
प्रतिमा शर्मा ने मृत्युपूर्व बयान में कहा था कि उनके दो बेटे हैं लेकिन फिर भी ससुराल में सास और पति के कारण बहुत झगड़ा होता था, इसलिए वह मायके रहने लगी थीं, उनका कोर्ट में केस भी चल रहा था। कोर्ट में समझौते के आधार पर वह ट्रायल पर कुछ दिन के लिए ससुराल आई थी लेकिन वहां दोबारा क्लेश शुरू हो गया। इस पर उन्होंने खुद ही अपने ऊपर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा ली।

अदालत ने एसएसपी को लिखा- लकीर की फकीर न बने पुलिस
अदालत ने इस बयान का जिक्र करते हुए कहा कि इसके बावजूद विवेचक ने लकीर के फकीर की तरह विवेचना की, सत्य का पता लगाने की कोई कोशिश नहीं की। अदालत ने एसएसपी को भेजे पत्र में कहा है कि न्याय प्रदान करने के लिए न्यायालय के साथ पुलिस का भी दायित्व होता है। निष्पक्ष और पूर्वाग्रह रहित विवेचना से ही न्याय संभव है जो पीड़ित के साथ अभियुक्त का भी विधिक अधिकार है। लकीर के फकीर की तरह सिर्फ धारा देखकर आरोप पत्र भेजना अन्याय है।

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