Prayagraj News : एक मध्यम वर्गीय महिला के लिए 2500 रुपए में भरपेट भोजन जुटा पाना असंभव
अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक के मामले में भरण-पोषण राशि को लेकर अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि एक मध्यम वर्गीय परिवार की महिला के लिए 2500 रुपए की मामूली राशि में भरपेट भोजन जुटा पाना लगभग असंभव है। अगर यह मान भी लिया जाए कि पति बेरोजगार हो गया है तो भी वह एक कुशल, योग्य और सक्षम व्यक्ति होने के नाते अपनी पत्नी को भरण- पोषण के लिए धनराशि देने के लिए जिम्मेदार होगा।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकलपीठ ने शिल्पी शर्मा की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए पारित किया। दरअसल परिवार न्यायालय, वाराणसी द्वारा सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पति को मात्र 2500 रुपए प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था, जिससे व्यथित होकर पत्नी ने वर्तमान याचिका दाखिल की। पत्नी का दावा है कि उनके पति की मासिक आय लगभग चार लाख रुपए से भी अधिक है जबकि पति ने अपनी मासिक आय केवल 12 हजार रुपए बताई है। पत्नी ने अपने दावे को पुख्ता करने के लिए पति के घर में ड्राइवर, घरेलू नौकर सहित उनकी फिजूलखर्ची वाली जीवन शैली के कई साक्ष्य प्रस्तुत किए, साथ ही यह भी बताया कि पति को अपने रोजमर्रा के खर्चों के लिए कम से कम 50 हजार रुपए महीने की जरूरत होगी।
दूसरी ओर पति ने कोर्ट को बताया कि वर्ष 2016 में उसने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद उसकी आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई और चूंकि उसकी पत्नी बिना किसी कारण अपने वैवाहिक घर को छोड़कर चली गई थी, इसीलिए वह धारा 125 के प्रावधान (4) के अनुसार भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। हालांकि कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यद्यपि पति ने स्वयं को वर्तमान में बेरोजगार बताया है, लेकिन ऐसा संभवतः उसने अंतरिम भरण-पोषण की राशि में किसी भी वृद्धि से बचने के लिए किया है। अतः कोर्ट ने पति द्वारा किए गए भारी खर्च, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, इंजीनियर के रूप में उसकी व्यावसायिक योग्यता को ध्यान में रखते हुए दिसंबर 2024 से परिवार न्यायालय के समक्ष भरण-पोषण मामले के लंबित रहने के दौरान उसे 10 हजार रुपए प्रतिमाह की दर से पत्नी को संशोधित अंतरिम भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश दिया।
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