म्यांमार का रखाइन राज्य निकट भविष्य में कर सकता है भयंकर अकाल का सामना : संयुक्त राष्ट्र
संयुक्त राष्ट्र। म्यांमार में सरकारी बलों और शक्तिशाली जातीय समूहों के बीच संघर्ष से प्रभावित अल्पसंख्यक रोहिंग्या समुदाय बहुल रखाइन प्रांत को निकट भविष्य में भयंकर अकाल का सामना करना पड़ सकता है। संयुक्त राष्ट्र विकास एजेंसी ने एक नयी रिपोर्ट में इस बारे में आगाह किया है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने बृहस्पतिवार को जारी रिपोर्ट में कहा कि "एक भयानक तूफान उभर रहा है" जिसने पश्चिमी रखाइन प्रांत को "अभूतपूर्व आपदा के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है।"
इसमें म्यांमार के अन्य स्थानों और पड़ोसी बांग्लादेश से सामानों की आपूर्ति पर प्रतिबंध, निवासियों के लिए रोजगार का अभाव, अत्यधिक महंगाई, खाद्य सामग्री के उत्पादन में उल्लेखनीय गिरावट, तथा आवश्यक सेवाओं व सामाजिक सुरक्षा तंत्र के अभाव समेत एक दूसरे से जुड़े घटनाक्रमों की ओर इशारा किया गया है। यूएनडीपी ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप "पहले से ही अत्यधिक असुरक्षित आबादी, आने वाले महीनों में पतन के कगार पर पहुंच सकती है।
बौद्ध बहुल म्यांमा लंबे समय से रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों को बांग्लादेश से आए “बंगाली” मानता रहा है, जबकि उनके परिवार पीढ़ियों से देश में रह रहे हैं। देश ने 1982 से लगभग सभी लोगों को नागरिकता देने से इनकार कर दिया है। अगस्त 2017 में म्यांमा के सुरक्षाकर्मियों पर रोहिंग्या विद्रोही समूह के हमलों के बाद सेना ने दमनकारी अभियान चलाया, जिसके कारण कम से कम 7,40,000 रोहिंग्या लोगों को भागकर बांग्लादेश में शरण लेनी पड़ी।
सेना पर सामूहिक बलात्कार, हत्या और हजारों मकानों को जलाने का आरोप है। साल 2021 में सेना के आंग सान सू ची की निर्वाचित सरकार के तख्तापलट करने के बाद से लोकतंत्र समर्थक गुरिल्ला और जातीय अल्पसंख्यक सशस्त्र बल सेना को सत्ता से बेदखल करने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले साल नवंबर में, म्यांमा की केंद्रीय सरकार से स्वायत्तता की मांग कर रही अराकान आर्मी ने रखाइन में सेना के खिलाफ आक्रामक अभियान शुरू किया और आधे से अधिक कस्बों पर नियंत्रण हासिल कर लिया। रखाइन जातीय अल्पसंख्यक आंदोलन की सशस्त्र शाखा अराकान आर्मी सैन्य सरकार को गिराने की कोशिश कर रहे सशस्त्र जातीय समूह के गठबंधन का हिस्सा भी है।
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