कैदियों के बारे मे राष्ट्रपति मुर्मू के भाषण ने उच्चतम न्यायालय को रिपोर्ट के लिए प्रेरित किया: सीजेआई
नई दिल्ली। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने मंगलवार को खुलासा किया कि कैदियों की दुर्दशा पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के भाषण से एक चर्चा की शुरुआत हुई, जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की।सीजेआई चंद्रचूड़ ने राष्ट्रपति भवन में ‘‘प्रिजन्स इन इंडिया: मैपिंग प्रिजन मैनुअल्स एंड मेजर्स फॉर रिफार्मेशन एंड डीकंजेशन’’ जारी किये जाने के मौके पर बोलते हुए, राष्ट्रपति को 2022 के संविधान दिवस समारोह में कैदियों, विशेष रूप से विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा को उजागर करने वाले उनके भाषण के लिए धन्यवाद दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रपति के भाषण के बाद उच्चतम न्यायालय में एक चर्चा की शुरुआत हुई और आज एक रिपोर्ट जारी की गई। यह रिपोर्ट राष्ट्रपति की दूरदर्शिता का परिणाम है और यह उचित है कि इसे उनके द्वारा ही जारी किया जा रहा है।’’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैं यह कहूंगा कि यह एक उदाहरण है कि जब राष्ट्र की विभिन्न शाखाएं एक संवैधानिक लक्ष्य को साझा करती हैं, तो क्या हासिल किया जा सकता है।’’
जेलों पर रिपोर्ट के अलावा, राष्ट्रपति ने ‘‘जस्टिस फॉर द नेशन : रिफ्लेक्शंस आन 75 ईयर्स आफ द सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया’’ और ‘‘लीगल एड थ्रू लॉ स्कूल्स: ए रिपोर्ट आन द वर्किंग आफ लीगल एड सेल्स इन इंडिया’’ रिपोर्ट भी जारी की। सीजेआई ने कहा कि सभी प्रकाशनों की खासियत पारदर्शिता का तत्व है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने कुछ भी छिपाने की कोशिश नहीं की है और हमारा खुलासा पूर्ण और निष्पक्ष है।’’ इस मौके पर कई गणमान्य लोग उपस्थित थे जिनमें 51वें प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किये गए न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल शामिल थे।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि तीनों प्रकाशनों को जारी किया जाना भारत के उच्चतम न्यायालय की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ पर आयोजित समारोहों का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि तीनों प्रकाशन उच्चतम न्यायालय और व्यापक न्यायिक प्रणाली दोनों के लिए "आत्म-चिंतन के क्षण" होने के कारण "महत्त्वपूर्ण" थे।
सीजेआई ने कहा कि जेल रिपोर्ट में सभी राज्यों के जेल नियमावली का विश्लेषण हैं और उन पहलुओं का उल्लेख है, जिन पर शायद ही कभी संस्थागत ध्यान दिया गया हो, जैसे कि नशामुक्ति पहल के अलावा महिला कैदियों के लिए प्रजनन अधिकार। सीजेआई ने कहा, ‘‘अध्ययन के महत्वपूर्ण निष्कर्षों में से एक यह था कि कैदियों की जाति अक्सर उन्हें आवंटित किए जाने वाले काम को निर्धारित करती है, जिसमें उत्पीड़ित जातियों के कैदियों को सफाई से संबंधित कार्य आवंटित किए जाते हैं।’’
उन्होंने हाल ही में शीर्ष अदालत के उस फैसले को रेखांकित किया जिसमें जेलों में जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त करने का निर्देश दिया गया है। उन्होंने विधि विद्यालयों में लीगल-एड क्लीनिक के महत्वपूर्ण कार्य को भी रेखांकित किया और कहा कि "जस्टिस फॉर द नेशन’’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में न्यायाधीशों, प्रख्यात न्यायविदों, शिक्षाविदों और वकीलों द्वारा उच्चतम न्यायालय के न्यायशास्त्र में प्रमुख विषयों और प्रवृत्तियों पर निबंध शामिल हैं। सीजेआई ने बताया कि फली नरीमन ने अपने निधन से ठीक पहले अपनी रिपोर्ट उन्हें ई-मेल की थी।
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