भारतीय श्रमिकों की दुर्दशा

भारतीय श्रमिकों की दुर्दशा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हाल की कुवैत यात्रा ने भारतीय श्रमिकों की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित किया है। कुवैत में बहुत बड़ी संख्या में भारतीय कामगार हैं। हर साल काफी बड़ी संख्या में भारत के लोग वहां पर जाते हैं। खासकर स्वास्थ्य और तेल क्षेत्र में। यानी कुवैत में काम करने वाले भारतीय वहां की तरक्की और अर्थव्यवस्था में तो अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा ही रहे हैं वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बना रहे हैं। कुवैत में काम करने वाले भारतीय कामगार वहां से अच्छी-खासी रकम अपने परिवार के पास भारत में भेजते हैं।

कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि कुवैत से भारत भेजे जाने वाले पैसे का आंकड़ा 6.3 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। 2023-2024 के वित्तीय वर्ष में दोनों देशों के बीच व्यापार 10.47 अरब डॉलर का रहा। पिछले चार दशकों में भारतीय प्रधानमंत्री की पहली कुवैत यात्रा रही। पीएम मोदी ने कुवैत की जमीन से साफ-साफ संदेश देने की कोशिश की। भारत किस तरह से कुवैत की तरक्की में मददगार हो सकता है। न्यू कुवैत बनाने के लिए तकनीक, मैनपावर जो भी चाहिए सब भारत के पास है। ऐसे में खाड़ी देशों के लिए भारत पर भरोसे की एक बड़ी वजह वहां वर्षों से रह रहे लाखों की तादाद में भारतीय भी हैं। कुल मिलाकर कुवैत की अर्थव्यवस्था को धार देने में भारतीय अहम रोल निभाते हैं। 

भारतीय समुदाय के दस लाख से ज्यादा लोगों के लिए कुवैत के समर्थन को स्वीकार करने के बावजूद, भारतीय श्रमिकों द्वारा लगातार खतरों का सामना करना चिंता का सबब बना हुआ है। हालांकि भारत सरकार ने श्रमिकों के प्रवासन को विनियमित करने के प्रयास किए हैं। उत्प्रवासन की मंजूरी (ईसीआर) की जरूरत वाले 18 देशों की यात्रा करने वाले श्रमिकों के लिए एक दशक पहले ई-माइग्रेट प्रणाली की शुरूआत इस संबंध में आगे की दिशा में एक कदम थी।

कुवैत की जमीन से खाड़ी देशों को भारत का रास्ता दिखाया। अरब वर्ल्ड के देशों को भारत के रूप में दुनिया के नक्शे पर दमदार भूमिका निभाने वाला एक भरोसेमंद दोस्त खड़ा है, तो भारत को नए कारोबारी साझीदार मिल रहे हैं। जहां के बड़े कार्यबल के लिए रोजगार के मौके भी हैं। लेकिन भारतीय कामगारों की दुर्दशा वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती आर्थिक और कूटनीतिक महत्वाकांक्षाओं के बिल्कुल उलट है। भारत के उत्प्रवासन अधिनियम में सुधार, भर्ती एजेंटों की कड़ी निगरानी और विदेशी नियोक्ताओं से उच्च मुआवजे की गारंटी की मांग करना बेहद जरूरी है। प्रवासी भारतीयों के संघर्षों का हल ढूंढने के लिए प्रवासी भारतीय सम्मेलन जैसे मंचों का इस्तेमाल करना चाहिए।