लखीमपुर खीरी: कटान पीड़ितों का छलका दर्द...खाने के पड़े थे लाले तो दिवाली कैसे मनाते

प्रशासन के लाख वादों के बावजूद चेहरों पर नहीं लौट सकी मुस्कान

लखीमपुर खीरी: कटान पीड़ितों का छलका दर्द...खाने के पड़े थे लाले तो दिवाली कैसे मनाते

लखीमपुर खीरी, अमृत विचार। विकास खंड बिजुआ की ग्राम पंचायत करसौर के मजरा चकपुरवा, नयापुरवा में दो माह पूर्व शारदा नदी में आई भीषण बाढ़ व कटान के कारण इस गांव के दर्जनों आशियाने कटकर नदी में बह गए थे।

दर्जनों लोगों ने कटान के डर से अपने आशियाने खुद तोड़ लिए थे। बाढ़ व कटान के समय अधिकारी, जनप्रतिनिधियों द्वारा स्थलीय निरीक्षण कर कटान पीड़ितों की मदद के लिए आश्वस्त भी किया गया था, लेकिन दो माह बीत जाने के बावजूद लोग तिरपाल व खुले में अपना जीवन यापन कर जिंदगी जीने को मजबूर हैं। इन कटान पीड़ितों को सरकार से रहने के लिए जमीन, आवास की दरकार है। सहायता की उम्मीद में यह लोग सरकार से उम्मीद की आस लगाए बैठे हैं।
 
दीपावली पर्व पर अमृत विचार की टीम ने हकीकत जानने के लिए ग्राउंड पर जाकर बाढ़ कटान पीड़ितों से उनका हाल चाल जानने की कोशिश की जिस पर उन लोगों ने खुलकर अपना दर्द बयां किया। नदी किनारे खुले में रहकर जीवन यापन कर रही कटान पीड़िता रामकली ने बताया कि दीपावली का त्योहार बिना खुशियों के ही मनाना पड़ा है। खुले में मच्छरदानी लगाकर गुजर बसर कर रहे हैं। नदी किनारे गुजर बसर कर रहे हैं। सुरेश कुमार ने बताया कि बाढ़ से घर कट गया। मुआवजे के लिए कई बार तहसील के चक्कर लगा चुका हूं। वहां से सिर्फ आश्वासन दे दिया जाता है पर मुआवजा नहीं मिलता। झोपड़ी में खाना बना रही मैनावती ने बताया कि खाने, रहने तक के लाले पड़े हैं। दीपावली की खुशियां कैसे मनाते। बंधे पर आज भी दर्जनों परिवार ऐसे हैं जिन्होंने झोपड़पट्टी में रहकर बिना खुशियों के ही दीपावली के त्यौहार की औपचारिकता निभाई है।